Wednesday, March 25, 2015

Hindi Idioms (हिंदी मुहावरे) , Hindi Antonyms (विलोम शब्द) , and Hindi Proverbs (हिंदी लोकोक्तियाँ) व हिंदी व्याकरण

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हिंदी व्याकरण 



Hindi Idioms (हिंदी मुहावरे)

हिंदी मुहावरे :


  1. अंगूठा दिखाना - मना कर देना 
  2. अक्ल सठियाना - बुद्धि भ्रष्ट होना 
  3. अंगूठे पर रखना - परवाह न करना 
  4. अपना उल्लू सीधा करना - अपना काम बना लेना 
  5. अपनी खिचड़ी अलग पकाना - सबसे अलग रहना 
  6. आँखों का तारा - बहुत प्यारा 
  7. आँखें बिछाना - स्वागत करना 
  8. आँखों में धूल झोंकना - धोखा देना 
  9. आग बबूला होना - अत्यधिक क्रोध करना 
  10. आस्तिन का सांप होना - कपटी मित्र 
  11. आँखें दिखाना - धमकाना 
  12. आसमान टूट पड़ना - अचानक मुसीबत आ जाना 
  13. आसमान पर दिमाग होना - अहंकारी होना 
  14. ईंट का जवाब पत्थर से देना - करारा जवाब देना 
  15. ईद का चाँद होना - बहुत कम दिखाई देना 
  16. ईंट से ईंट बजाना - ध्वस्त कर देना 
  17. उल्टे छुरे से मूंढ़ना - ठग लेना 
  18. उड़ती चिड़िया के पंख गिनना - अत्यन्त चतुर होना  
  19. ऊंट के मुंह में जीरा होना - अधिक खुराक वाले को कम देना 
  20. एड़ी चोटी का जोर लगाना - बहुत प्रयास करना 
  21. ओखली में सिर देना - जान बूझकर मुसीबत मोल लेना 
  22. औधी खोपड़ी का होना - बेवकूफ होना 
  23. कलेजा ठण्डा होना - शांत होना 
  24. कलेजे पर पत्थर रखना - दिल मजबूत करना 
  25. कलेजे पर सांप लोटना - अन्तर्दाह होना 
  26. कलेजा मुंह को आना -  घबरा जाना 
  27. काठ का उल्लू होना - मूर्ख होना 
  28. कान काटना - चतुर होना 
  29. कान खड़े होना - सावधान हो जाना 
  30. काम तमाम करना - मार डालना 
  31. कुएं में बांस डालना - बहुत खोजबीन करना 
  32. कलई खुलना - पोल खुलना 
  33. कलेजा फटना - दुःख होना 
  34. कीचड़ उछालना - बदनाम करना 
  35. खून खौलना - क्रोध आना 
  36. खून का प्यासा होना - प्राण लेने को तत्पर होना 
  37. खाक छानना - भटकना 
  38. खटाई में पड़ना - व्यवधान आ जाना 
  39. गाल बजाना - डींग हांकना 
  40. गूलर का फूल होना - दुर्लभ होना 
  41. गांठ बांधना - याद रखना 
  42. गुड़ गोबर कर देना - काम बिगाड़ देना 
  43. घाट -घाट का पानी पीना - अनुभवी होना 
  44. घी के दिए जलाना - प्रसन्न होना 
  45. घुटने टेकना - हार मानना 
  46. घड़ों पानी पड़ना - लजिज्त होना 
  47. चाँद का टुकड़ा होना - बहुत सुंदर होना 
  48. चिकना घड़ा होना - बात का असर न होना 
  49. चांदी काटना - अधिक लाभ कमाना 
  50. चांदी का जूता मारना - रिश्वत देना 
  51. छक्के छुड़ाना - परास्त कर देना 
  52. छप्पर फाड़कर देना - अनायास लाभ होना 
  53. छटी का दूध याद आना - अत्यधिक कठिन होना 
  54. छाती पर मूंग दलना - पास रहकर दिल दु:खाना 
  55. छूमन्तर होना - गायब हो जाना 
  56. छाती पर सांप लोटना - ईर्ष्या करना 
  57. जबान को लगाम देना - सोच समझकर बोलना 
  58. जान के लाले पड़ना - प्राण संकट में पड़ना 
  59. जी खट्टा होना - मन फिर जाना 
  60. जमीन पर पैर न रखना - अहंकार होना 
  61. जहर उगलना - बुराई करना 
  62. जान पर खेलना - प्राणों की बाजी लगाना 
  63. टेढ़ी खीर होना - कठिन कार्य 
  64. टांग अड़ाना - दखल देना 
  65. टें बोल जाना - मर जाना 
  66. ठकुर सुहाती कहना - खुशामद करना 
  67. डकार जाना - हड़प लेना 
  68. ढोल की पोल होना - खोखला होना 
  69. तीन तेरह होना - बिखर जाना 
  70. तलवार के घाट उतारना - मार डालना 
  71. थाली का बैगन होना - सिद्धांतहीन होना 
  72. दांत काटी रोटी होना - गहरी दोस्ती 
  73. दो -दो हाथ करना - लड़ना 
  74. धूप में बाल सफेद होना - अनुभव होना 
  75. धाक जमाना - प्रभावित करना 
  76. नाकों चने चबाना - बहुत सताना 
  77. नाक -भौं सिकोड़ना - अप्रसन्नता व्यक्त करना 
  78. पत्थर की लकीर होना - अमिट होना 
  79. पेट में दाढ़ी होना - कम उम्र में अधिक जानना 
  80. पौ बारह होना - खूब लाभ होना 
  81. कालानाग होना - बहुत घातक व्यक्ति 
  82. केर -बेर का संग होना - विपरीत मेल 
  83. धोंधा वसंत होना - मूर्ख व्यक्ति 
  84. घूरे के दिन फिरना - अच्छे दिन आना 
  85. चंडूखाने की बातें करना - झूठी बातें होना 
  86. चंडाल चौकड़ी - दुष्टों का समूह 
  87. छिछा लेदर करना - दुर्दशा करना 
  88. टिप्पस लगाना - सिफारिश करना 
  89. टेक निभाना - प्रण पूरा करना 
  90. तारे गिनना - नींद न आना 
  91. त्रिशंकु होना - अधर में लटकना 
  92. मजा चखाना - बदला लेना 
  93. मन मसोसना - विवश होना 
  94. हाथ पसारना - मांगना 
  95. हाथ मलना - पछताना 
  96. हालत पतली होना - दयनीय दशा होना 
  97. सेमल का फूल होना - थोडें दिनों का असितत्व होना 
  98. सब्जबाग दिखाना - झूठी आशा देना 
  99. भुजा उठाकर कहना - प्रतिज्ञा करना 
  100. हाथ के तोते उड़ना - घबरा जाना

Hindi Antonyms (विलोम शब्द)

विलोम शब्द


1. अग्र - पश्च 
2. अज्ञ - विज्ञ 
3. अमृत -विष 
4. अथ - इति 
5. अघोष - सघोष 
6. अधम - उत्तम 
7. अपकार - उपकार 
8. अपेक्षा - उपेक्षा 
9. अस्त - उदय 
10. अनुरक्त - विरक्त 
11. अनुराग - विराग 
12. अन्तरंग - बहिरंग 
13. अवतल - उत्तल 
14. अवर - प्रवर 
15. अमर - मर्त्य 
16. अर्पण - ग्रहण 
17. अवनि - अम्बर 
18. अपमान - सम्मान 
19. अतिवृष्टि - अनावृष्टि 
20. अनुकूल - प्रतिकूल 
21. अन्तर्द्वन्द्व - बहिर्द्वन्द्व 
22. अग्रज - अनुज 
23. अकाल - सुकाल 
24. अर्थ - अनर्थ 
25. अँधेरा - उजाला 
26. अपेक्षित - अनपेक्षित 
27. आदि - अन्त 
28. आस्तिक - नास्तिक 
29. आरम्भ - समापन 
30. आहूत - अनाहूत 
31. आयात - निर्यात 
32. आभ्यन्तर - बाह्य
33. आवृत - अनावृत 
34. आशा - निराशा 
35. आरोहण - अवरोहण 
36. आस्था - अनास्था 
37. आर्द्र - शुष्क 
38. आकाश - पाताल 
39. आवाहन - विसर्जन 
40. आविर्भाव - तिरोभाव 
41. आरोह - अवरोह 
42. आदान - प्रदान 
43. आगामी - विगत 
44. आदर -अनादर 
45. आकर्षण - विकर्षण 
46. आर्य - अनार्य 
47. आश्रित - अनाश्रित 
48. इष्ट - अनिष्ट 
49. इहलोक - परलोक 
50. उग्र - सौम्य 
51. उदात्त - अनुदात्त 
52. उत्कृष्ट - निकृष्ट 
53. उपसर्ग - परसर्ग  
54. उन्मुख - विमुख 
55. उन्नत - अवनत 
56. उद्दत - विनीत 
57. उपमान - उपमेय 
58. उपत्यका - अधित्यका 
59. उत्तरायण - दक्षिणायन 
60. उन्मूलन - रोपण 
61. उष्ण - शीत 
62. उदयाचल - अस्ताचल 
63. उपयुक्त - अनुपयुक्त 
64. उच्च - निम्न 
65. एड़ी - चोटी 
66. ऐहिक - पारलौकिक 
67. औचित्य - अनौचित्य 
68. एक - अनेक 
69. एकत्र - विकीर्ण 
70. एकता - अनेकता 
71. एकाग्र - चंचल 
72. ऐतिहासिक - अनैतिहासिक 
73. औपचारिक - अनौपचारिक 
74. ऋजु - वक्र 
75. ऋत - अनृत 
76. कटु - सरल 
77. कनिष्ट - जयेष्ट 
78. कृष्ण - शुक्ल 
79. कुटिल - सरल 
80. कृत्रिम - अकृत्रिम 
81. करुण - निष्ठुर 
82. कायर - वीर 
83. कुलीन - अकुलीन 
84. क्रय - विक्रय 
85. कल्पित - यथार्थ 
86. कृतज्ञ - कृतघ्न 
87. कोप -कृपा 
88. क्रोध - क्षमा 
89. कृश - स्थूल 
90. क्रिया - प्रतिक्रिया 
91. खण्डन - मण्डन 
92. खरा - खोटा 
93. खाद्य - अखाद्य 
94. गुप्त - प्रकट 
95. गरल - सुधा 
96. गम्भीर - वाचाल 
97. गुरु - लघु 
98. गौरव - लाघव 
99. गोचर - अगोचर 
100. गुण - दोष 
101. ग्राम्य - नागर 
102. घृणा - प्रेम 
103. चिरंतन - नश्वर 
104. चल - अचल 
105. चंचल - अचंचल 
106. चिर - अचिर 
107. जीवन - मरण 
108. जाग्रत - सुप्त 
109. जंगम - स्थावर 
110. जागरण - सुषुप्ति 
111. ज्योति - तम 
112. तरुण - वृद्ध 
113. तृप्त - अतृप्त 
114. तृष्णा - तृप्ति 
115. तीक्ष्ण - कुंठित 
116. दण्ड - पुरस्कार 
117. दानी - कृपण 
118. दुरात्मा - महात्मा 
119. देव - दानव 
120. दिन - रात 
121. धृष्ट - विनीत 
122. निरर्थक - सार्थक 
123. निर्दय - सदय 
124. निषिद्ध - विहित 
125. नैसर्गिक - कृत्रिम 
126. निष्काम - सकाम 
127. परतन्त्र - स्वतन्त्र 
128. प्राचीन - नवीन 
129. प्राची - प्रतीची 
130. प्रभु - भृत्य 
131. प्रसाद - अवसाद 
132. पूर्ववर्ती - परवर्ती  
133. पाश्चात्य - पौवार्त्य 
134. बंजर - उर्वर 
135. भला - बुरा 
136. भूत - भविष्य 
137. मुख्य - गौण 
138. मनुज - दनुज 
139. मूक - वाचाल 
140. मन्द - तीव्र 
141. मौखिक - लिखित 
142. योगी -भोगी 
143. युद्ध - शान्ति 
144. यश - अपयश 
145. योग्य - अयोग्य 
146. राजा - रंक 
147. रक्षक -भक्षक 
148. रुग्ण - स्वस्थ 
149. रुदन - हास्य 
150. रिक्त - पूर्ण 
151. लौकिक - अलौकिक 
152. लम्बा - चौड़ा 
153. व्यास - समास 
154. विख्यात - कुख्यात 
155. विधि - निषेध 
156. विपन्न - सम्पन्न 
157. विपदा - सम्पदा 
158. वृष्टि - अनावृष्टि 
159. शासक - शासित 
160. शिष्ट - अशिष्ट 
161. शिख- नख 
162. श्याम - श्वेत 
163. शोक - हर्ष 
164. शोषक - पोषक 
165. सत्कार - तिरस्कार 
166. संक्षेप - विस्तार 
167. सूक्ष्म - स्थूल 
168. संगठन - विघटन 
169. संयोग - वियोग 
170. सुमति - कुमति 
171. सत्कर्म - दुष्कर्म 
172. सामिष - निरामिष 
173. स्मरण - विस्मरण 
174. संसदीय - असंसदीय 
175. सृजन - संहार 
176. क्षय - अक्षय 
177. क्षुद्र - विराट 
178. ज्ञेय - अज्ञेय 
179. स्वीकृति - अस्वीकृति 
180. भौतिक - आध्यात्मिक 



Hindi Proverbs (हिंदी लोकोक्तियाँ)

1. अपनी करनी पार उतरनी = जैसा करना वैसा भरना

2. आधा तीतर आधा बटेर = बेतुका मेल
3. अधजल गगरी छलकत जाए = थोड़ी विद्या या थोड़े धन को पाकर वाचाल हो जाना
4. अंधों में काना राजा = अज्ञानियों में अल्पज्ञ की मान्यता होना
5. अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग = अलग अलग विचार होना
6. अक्ल बड़ी या भैंस = शारीरिक शक्ति की तुलना में बौद्धिक शक्ति की श्रेष्ठता होना
7. आम के आम गुठलियों के दाम = दोहरा लाभ होना
8. अपने मुहं मियाँ मिट्ठू बनना = स्वयं की प्रशंसा करना
9. आँख का अँधा गाँठ का पूरा = धनी मूर्ख
10. अंधेर नगरी चौपट राजा = मूर्ख के राजा के राज्य में अन्याय होना
11. आ बैल मुझे मार = जान बूझकर लड़ाई मोल लेना
12. आगे नाथ न पीछे पगहा = पूर्ण रूप से आज़ाद होना
13. अपना हाथ जगन्नाथ = अपना किया हुआ काम लाभदायक होता है
14. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत = पहले सावधानी न बरतना और बाद में पछताना
15. आगे कुआँ पीछे खाई = सभी और से विपत्ति आना
16. ऊंची दूकान फीका पकवान = मात्र दिखावा
17. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे = अपना दोष दूसरे के सर लगाना
18. उंगली पकड़कर पहुंचा पकड़ना = धीरे धीरे साहस बढ़ जाना
19. उलटे बांस बरेली को = विपरीत कार्य करना
20. उतर गयी लोई क्या करेगा कोई = इज्ज़त जाने पर डर कैसा
21. ऊधौ का लेना न माधो का देना = किसी से कोई सम्बन्ध न रखना
22. ऊँट की चोरी निहुरे - निहुरे = बड़ा काम लुक - छिप कर नहीं होता
23. एक पंथ दो काज = एक काम से दूसरा काम
24. एक थैली के चट्टे बट्टे = समान प्रकृति वाले
25. एक म्यान में दो तलवार = एक स्थान पर दो समान गुणों या शक्ति वाले व्यक्ति साथ नहीं रह सकते
26. एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है = एक खराब व्यक्ति सारे समाज को बदनाम कर देता है
27. एक हाथ से ताली नहीं बजती = झगड़ा दोनों और से होता है
28. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा = दुष्ट व्यक्ति में और भी दुष्टता का समावेश होना
29. एक अनार सौ बीमार = कम वस्तु , चाहने वाले अधिक
30. एक बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय = अकर्मण्य को कोई भी नहीं रखना चाहता
31. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना = जान बूझकर प्राणों की संकट में डालने वाले प्राणों की चिंता नहीं करते
32. अंगूर खट्टे हैं = वस्तु न मिलने पर उसमें दोष निकालना
33. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू  तेली = बेमेल एकीकरण
34. काला अक्षर भैंस बराबर = अनपढ़ व्यक्ति
35. कोयले की दलाली में मुहं काला = बुरे काम से बुराई मिलना
36. काम का न काज का दुश्मन अनाज का =  बिना काम किये बैठे बैठे खाना
37. काठ की हंडिया बार बार नहीं चढ़ती= कपटी व्यवहार हमेशा नहीं किया जा सकता
38. का बरखा जब कृषि सुखाने = काम बिगड़ने पर सहायता व्यर्थ होती है
39. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर = समय पड़ने पर एक दुसरे की मदद करना
40. खोदा पहाड़ निकली चुहिया = कठिन परिश्रम का तुच्छ परिणाम
41. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे = अपनी शर्म छिपाने के लिए व्यर्थ का काम करना
42. खग जाने खग की ही भाषा = समान प्रवृति वाले लोग एक दुसरे को समझ पाते हैं
43. गंजेड़ी यार किसके, दम लगाई खिसके = स्वार्थ साधने के बाद साथ छोड़ देते हैं
44. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज = ढोंग रचना
45. घर की मुर्गी दाल बराबर = अपनी वस्तु का कोई महत्व नहीं
46. घर का भेदी लंका ढावे = घर का शत्रु  अधिक खतरनाक होता है
47. घर खीर तो बाहर भी खीर = अपना घर संपन्न हो तो बाहर भी सम्मान मिलता है
48. चिराग तले अँधेरा = अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता
49. चोर की दाढ़ी में तिनका = अपराधी व्यक्ति सदा सशंकित रहता है
50. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए = कंजूस होना
51. चोर चोर मौसेरे भाई = एक से स्वभाव वाले व्यक्ति
52. जल में रहकर मगर से बैर = स्वामी से शत्रुता नहीं करनी चाहिए
53. जाके पाँव न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई = भुक्तभोगी ही दूसरों का दुःख जान पाता है
54. थोथा चना बाजे घना = ओछा आदमी अपने महत्व का अधिक प्रदर्शन करता है
55. छाती पर मूंग दलना = कोई ऐसा काम होना जिससे आपको और दूसरों को कष्ट पहुंचे
56. दाल भात में मूसलचंद = व्यर्थ में दखल देना
57. धोबी का कुत्ता घर का न घाट का = कहीं का न रहना
58. नेकी और पूछ पूछ = बिना कहे ही भलाई करना
59. नीम हकीम खतरा ए जान = थोडा ज्ञान खतरनाक होता है
60. दूध का दूध पानी का पानी = ठीक ठीक न्याय करना
61. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद = गुणहीन गुण को नहीं पहचानता
62. पर उपदेश कुशल बहुतेरे = दूसरों को उपदेश देना सरल है
63. नाम बड़े और दर्शन छोटे = प्रसिद्धि के अनुरूप गुण न होना
64. भागते भूत की लंगोटी सही = जो मिल जाए वही काफी है
65. मान न मान मैं तेरा मेहमान = जबरदस्ती गले पड़ना
66. सर मुंडाते ही ओले पड़ना = कार्य प्रारंभ होते ही विघ्न आना
67. हाथ कंगन को आरसी क्या = प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत है
68. होनहार बिरवान के होत चिकने पात  = होनहार व्यक्ति का बचपन में ही पता चल जाता है
69. बद अच्छा बदनाम बुरा = बदनामी बुरी चीज़ है
70. मन चंगा तो कठौती में गंगा = शुद्ध मन से भगवान प्राप्त होते हैं
71. आँख का अँधा, नाम नैनसुख = नाम के विपरीत गुण होना
72. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया = संसार में कहीं सुख है तो कहीं दुःख है 
73. उतावला सो बावला = मूर्ख व्यक्ति जल्दबाजी में काम करते हैं 
74. ऊसर बरसे तृन नहिं जाए = मूर्ख पर उपदेश का प्रभाव नहीं पड़ता 
75. ओछे की प्रीति बालू की भीति = ओछे व्यक्ति से मित्रता टिकती नहीं है 
76. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा = सिद्धांतहीन गठबंधन 
77. कानी के ब्याह में सौ जोखिम = कमी होने पर अनेक बाधाएं आती हैं 
78. को उन्तप होब ध्यहिंका हानी = परिवर्तन का प्रभाव न पड़ना 
79. खाल उठाए सिंह की स्यार सिंह नहिं होय = बाहरी रूप बदलने से गुण नहीं बदलते 
80. गागर में सागर भरना = कम शब्दों में अधिक बात करना 
81. घर में नहीं दाने , अम्मा चली भुनाने = सामर्थ्य से बाहर कार्य करना 
82. चौबे गए छब्बे बनने दुबे बनकर आ गए = लाभ के बदले हानि 
83. चन्दन विष व्याप्त नहीं लिपटे रहत भुजंग = सज्जन पर कुसंग का प्रभाव नहीं पड़ता 
84. जैसे नागनाथ वैसे सांपनाथ = दुष्टों की प्रवृति एक जैसी होना 
85. डेढ़ पाव आटा पुल पै रसोई = थोड़ी सम्पत्ति पर भारी दिखावा 
86. तन पर नहीं लत्ता पान खाए अलबत्ता = झूठी रईसी दिखाना 
87. पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं = पराधीनता में सुख नहीं है 
88. प्रभुता पाहि काहि मद नहीं = अधिकार पाकर व्यक्ति घमंडी हो जाता है 
89. मेंढकी को जुकाम = अपनी औकात से ज्यादा नखरे 
90. शौक़ीन बुढिया चटाई का लहंगा = विचित्र शौक 
91. सूरदास खलकारी का या चिदै न दूजो रंग = दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता 
92. तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार = दृढ प्रतिज्ञ लोग अपनी बात पे डटे रहते हैं 
93. सौ सुनार की, एक लुहार की = निर्बल की सौ चोटों की तुलना में बलवान की एक चोट काफी है 
94. भई गति सांप छछूंदर केरी = असमंजस की स्थिति में पड़ना 
95. पुचकारा कुत्त सिर चढ़े = ओछे लोग मुहं लगाने पर अनुचित लाभ उठाते हैं 
96. मुहं में राम बगल में छुरी = कपटपूर्ण व्यवहार 
97. जंगल में मोर नाचा किसने देखा = गुण की कदर गुणवानों के बीच ही होती है 
98. चट मंगनी पट ब्याह = शुभ कार्य तुरंत संपन्न कर देना चाहिए 
99. ऊंट बिलाई लै गई तौ हाँजी-हाँजी कहना = शक्तिशाली की अनुचित बात का समर्थन करना 
100. तीन लोक से मथुरा न्यारी = सबसे अलग रहना 


Sandhi (Seam) ( संधि)


 संधि :-

दो पदों में संयोजन होने पर जब दो वर्ण पास -पास आते हैं , तब उनमें जो विकार सहित मेल होता है , उसे संधि कहते हैं !

संधि तीन प्रकार की होती हैं :-

1. स्वर संधि -  दो स्वरों के पास -पास आने पर उनमें जो रूपान्तरण होता है , उसे स्वर कहते है !  स्वर संधि के पांच भेद हैं :-

1. दीर्घ स्वर संधि 

2. गुण स्वर संधि 

3. यण स्वर संधि 

4. वृद्धि स्वर संधि 

5. अयादि स्वर संधि 

1-  दीर्घ स्वर संधि-    जब दो सवर्णी स्वर पास -पास आते हैं , तो मिलकर दीर्घ हो जाते हैं !
     जैसे -

1. अ+अ = आ          भाव +अर्थ = भावार्थ 

2. इ +ई =  ई           गिरि +ईश  = गिरीश 

3. उ +उ = ऊ           अनु +उदित = अनूदित 

4. ऊ +उ  =ऊ          वधू +उत्सव =वधूत्सव 

5. आ +आ =आ        विद्या +आलय = विधालय   

2-   गुण संधि :-  अ तथा आ के बाद इ , ई , उ , ऊ तथा ऋ आने पर क्रमश: ए , ओ तथा अनतस्थ  र होता है इस विकार को गुण संधि कहते है !
      जैसे :-

1. अ +इ =ए           देव +इन्द्र = देवेन्द्र 

2. अ +ऊ =ओ         जल +ऊर्मि = जलोर्मि 

3. अ +ई =ए            नर +ईश = नरेश 

4. आ +इ =ए           महा +इन्द्र = महेन्द्र 

5. आ +उ =ओ          नयन +उत्सव = नयनोत्सव 

3- यण स्वर संधि :-   यदि इ , ई , उ , ऊ ,और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो इनका परिवर्तन क्रमश:  य , व् और  र में हो जाता है ! जैसे -  

1. इ का य = इति +आदि = इत्यादि 

2. ई का य = देवी +आवाहन = देव्यावाहन 

3. उ का व = सु +आगत = स्वागत 

4. ऊ का व = वधू +आगमन = वध्वागमन 

5. ऋ का र = पितृ +आदेश = पित्रादेश 

3-  वृद्धि स्वर संधि :-  यदि  अ  अथवा  आ के बाद ए अथवा ऐ हो तो दोनों को मिलाकर ऐ और यदि ओ  अथवा औ हो तो दोनों को मिलाकर औ हो जाता है ! जैसे  - 

1. अ +ए =ऐ        एक +एक =  एकैक 

2. अ +ऐ =ऐ        मत +ऐक्य = मतैक्य 

3. अ +औ=औ      परम +औषध = परमौषध 

4. आ +औ =औ    महा +औषध = महौषध 

5. आ +ओ =औ     महा +ओघ = महौघ 

5- अयादि स्वर संधि :-  यदि ए , ऐ और ओ , औ के पशचात इन्हें छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो इनका परिवर्तन क्रमश: अय , आय , अव , आव में हो जाता है जैसे - 

1. ए का अय          ने +अन = नयन 

2. ऐ का आय         नै +अक = नायक 

3. ओ का अव         पो +अन = पवन 

4. औ का आव        पौ +अन = पावन 

5.  का परिवर्तन  में =   श्रो +अन = श्रवण 

2- व्यंजन संधि :-  व्यंजन के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उस व्यंजन में जो रुपान्तरण होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं जैसे :- 

1. प्रति +छवि = प्रतिच्छवि 

2. दिक् +अन्त = दिगन्त 

3. दिक् +गज = दिग्गज 

4. अनु +छेद =अनुच्छेद 

5. अच +अन्त = अजन्त  

3- विसर्ग संधि : -  विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो विकार होता है ,  उसे विसर्ग संधि कहते हैं ! जैसे -

1. मन: +रथ = मनोरथ 

2. यश: +अभिलाषा = यशोभिलाषा 

3. अध: +गति = अधोगति 

4. नि: +छल  = निश्छल 

5. दु: +गम = दुर्गम 

Samaas (Compound) (समास)


समास -


दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से नए शब्द बनाने की क्रिया को समास कहते हैं !
सामासिक पद को विखण्डित करने की क्रिया को विग्रह कहते हैं !

समास के छ: भेद हैं -

1- अव्ययीभाव समास - जिस समास में पहला पद प्रधान होता है तथा समस्त पद अव्यय का काम करता है , उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं !जैसे - 

      ( सामासिक पद )                     ( विग्रह )

1.      यथावधि                          अवधि के अनुसार    

2.      आजन्म                           जन्म पर्यन्त 

3.      प्रतिदिन                           दिन -दिन 

4.      यथाक्रम                           क्रम के अनुसार 

5.      भरपेट                              पेट भरकर 


2- तत्पुरुष समास -  इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा विभक्ति चिन्हों का लोप हो जाता है !  तत्पुरुष समास के छ: उपभेद विभक्तियों के आधार पर किए गए हैं -

1. कर्म तत्पुरुष 

2. करण तत्पुरुष

3. सम्प्रदान तत्पुरुष 

4. अपादान तत्पुरुष 

5. सम्बन्ध तत्पुरुष 

6. अधिकरण तत्पुरुष 

- उदाहरण इस प्रकार हैं - 

        ( सामासिक पद )                   ( विग्रह )                           ( समास )

1. कोशकार                          कोश को करने वाला               कर्म तत्पुरुष 

2. मदमाता                          मद से माता                         करण तत्पुरुष 

3. मार्गव्यय                    मार्ग के लिए व्यय                 सम्प्रदान तत्पुरुष 

4. भयभीत                       भय से भीत                         अपादान तत्पुरुष 

5. दीनानाथ                     दीनों के नाथ                        सम्बन्ध तत्पुरुष 

6. आपबीती                 अपने पर बीती                      अधिकरण तत्पुरुष                           




3- कर्मधारय समास -  जिस समास के दोनों पदों में विशेष्य - विशेषण या उपमेय - उपमान सम्बन्ध हो तथा दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति आये उसे कर्मधारय समास कहते हैं !  जैसे :-

       ( सामासिक पद )                 ( विग्रह )

1.      नीलकमल                     नीला है जो कमल

2.      पीताम्बर                       पीत है जो अम्बर
3.      भलामानस                    भला है जो मानस
4.      गुरुदेव                           गुरु रूपी देव
5.      लौहपुरुष                       लौह के समान ( कठोर एवं शक्तिशाली  ) पुरुष

4-  बहुब्रीहि समास -  अन्य पद प्रधान समास को बहुब्रीहि समास कहते हैं !इसमें दोनों पद किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करते हैं और वे किसी अन्य संज्ञा के विशेषण की भांति कार्य करते हैं ! जैसे -
       ( सामासिक पद )               ( विग्रह )
1.      दशानन                        दश हैं आनन जिसके  ( रावण )
2.      पंचानन                        पांच हैं मुख जिनके    ( शंकर जी )
3.      गिरिधर                        गिरि को धारण करने वाले   ( श्री कृष्ण )
4.      चतुर्भुज                        चार हैं भुजायें जिनके  ( विष्णु )
5.      गजानन                       गज के समान मुख वाले  ( गणेश जी )


5-  द्विगु समास -  इस समास का पहला पद संख्यावाचक होता है और सम्पूर्ण पद समूह का बोध कराता है ! जैसे -       

         ( सामासिक पद )                  ( विग्रह )

1.        पंचवटी                           पांच वट वृक्षों का समूह

2.        चौराहा                            चार रास्तों का समाहार
3.        दुसूती                             दो सूतों का समूह
4.        पंचतत्व                          पांच तत्वों का समूह
5.        त्रिवेणी                           तीन नदियों  ( गंगा , यमुना , सरस्वती  ) का समाहार


6-  द्वन्द्व समास -  इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती है ! इनका विग्रह करने के लिए  ( और , एवं , तथा , या , अथवा ) शब्दों का प्रयोग किया जाता है !

     जैसे -

          ( सामासिक पद )                      ( विग्रह )

1.         हानि - लाभ                        हानि या लाभ
2.         नर - नारी                           नर और नारी
3.         लेन - देन                           लेना और देना
4.         भला - बुरा                          भला या बुरा
5.         हरिशंकर                             विष्णु और शंकर 

Hindi Sentences (हिंदी वाक्य)








हिंदी वाक्य :- वक्ता के कथन को पूर्णत: व्यक्त करने वाले सार्थक शब्द समूह को वाक्य कहते हैं।



वाक्य में पूर्णता तभी आती है जब पद सुनिश्चित क्रम में हों और इन पदों में पारस्परिक अन्वय (समन्वय ) विद्यमान हो। वाक्य की शुद्धता भी पदक्रम एवं अन्वय से सम्बंधित है।



वाक्य के भेद:-



1. रचना की दृष्टि से:- रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के होते हैं:

    (अ) सरल वाक्य
    (ब) संयुक्त वाक्य
    (स) मिश्रित वाक्य



(अ) सरल वाक्य:- जिन वाक्यों में एक मुख्य क्रिया हो, उन्हें सरल वाक्य कहते हैं। जैसे पानी बरस रहा है।



(ब) संयुक्त वाक्य:- जिन वाक्यों में साधारण या मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अव्ययों द्वारा होते है उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं, जैसे राम घर गया और खाना खाकर सो गया।



(स) मिश्रित वाक्य:- इनमें एक प्रधान उपवाक्य होता है और एक आश्रित उपवाक्य होता है जैसे राम ने कहा कि मैं कल नहीं आ सकूंगा।





2. अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद:- ये आठ प्रकार के होते हैं: -




  (1) विधानार्थक :- जिसमें किसी बात के होने का बोध हो।  जैसे मोहन घर गया।


  (2 ) निषेधात्मक :- जिसमें किसी बात के न होने का बोध हो। जैसे सीता ने गीत नहीं गाया।

  (3)  आज्ञावाचक :- जिसमें आज्ञा दी गई हो। जैसे यहां बैठो।

  (4) प्रश्नवाचक :- जिसमें कोई प्रश्न किया गया हो। जैसे तुम कहाँ रहते हो?

  (5) विस्मयवाचक :- जिसमें किसी भाव का बोध हो। जैसे हाय, वह मर गया।

  (6) संदेहवाचक :- जिसमें संदेह या संभावना व्यक्त की गई हो। जैसे वह आ गया होगा।

  (7) इच्छावाचक :- जिसमें कोई इच्छा या कामना व्यक्त की जाए। जैसे ईश्वर तुम्हारा भला करे।

  (8) संकेतवाचक :- जहाँ एक वाक्य दूसरे वाक्य के होने पर निर्भर हो। जैसे यदि गर्मी पड़ती तो पानी
       बरसता।

Upsarg (Prefixes) (उपसर्ग)






 उपसर्ग - वे शब्दांश है जो किसी शब्द से पूर्व लगकर उस शब्द का अर्थ बदल देते है उन्हें उपसर्ग कहते हैं ! जैसे - 

1- संस्कृत उपसर्ग -

( उपसर्ग )                  ( उपसर्ग से निर्मित शब्द ) 

1. अति                        अतिशय , अत्याचार , अतिसार 

2. आ                          आजीवन , आकार , आजीविका  

3. परि                         परिमाप , परिचय , परिमाण 

4. नि                          निपुण , निगम , निबन्ध 

5. उप                          उपकार , उपमान , उपयोग 

2- हिन्दी के उपसर्ग 

   ( उपसर्ग )                    ( उपसर्ग से निर्मित शब्द )

1. अ                                अचेत , अमर , अशान्त 

2. अन                              अनमोल , अनजान , अनाचार 

3. भर                               भरसक , भरमार , भरपेट 

4. दु                                 दुबला , दुगना , दुसह 

5. उन                               उनासी , उनतीस , उनचास 

3- अरबी - फारसी के उपसर्ग 

  ( उपसर्ग )            (अर्थ )                 ( नवीन शब्द )

1. अल                 अलमस्त               अलबत्ता , अलबेला 

2. बद                   हीनता                  बदतमीज , बदबू 

3. कम                  अल्प                    कमजोर, कमसिन 

4. ब                     अनुसार                 बनाम , बदौलत 

5. हम                   साथ                     हमराज , हमसफर 

4- अंग्रेजी के उपसर्ग 

   ( उपसर्ग )               ( उपसर्ग से निर्मित शब्द )

1. हाफ                         हाफ पेण्ट , हाफ बाडी 

2. सब                          सब -पोस्टमास्टर , सब -इन्सपेक्टर 

3. चीफ                         चीफ मिनिस्टर 

4. जनरल                      जनरल मैनेजर 

5. हैड                           हैड मुंशी , हैड पंडित 

5- उपसर्ग की भाँति प्रयुक्त होने वाले अन्य अव्यय 

1. का / कु -  कापुरुष , कुपुत्र 

2. चिर -  चिरकाल , चिरायु 

3. सह -  सहचर , सहकर्मी 

4. अ / अन -  अनीति , अधर्म , अनन्त 

5. अन्तर -  अन्तर्नाद , अन्तर्ध्यान 

Padbandh (Phrases) (पदबंध)




पदबंध - जब एक से अधिक पद मिलकर एक व्याकरणिक इकाई का काम करते हैं , तब उस बंधी हुई इकाई को पदबंध कहते हैं ! जैसे - सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा जीत गया !


पदबंध के पाँच भेद होते हैं - 

1- संज्ञा पदबंध - जब एक से अधिक पद मिलकर संज्ञा का काम करें ,तो उस पदबंध को संज्ञा पदबंध कहते हैं ! संज्ञा पदबंध के शीर्ष में संज्ञा पद होता है , अन्य सभी पद उस पर आश्रित होते हैं ! जैसे - 

   दीवार के पीछे खड़ा पेड़ गिर गया ।

इस वाक्य में रेखांकित शब्द संज्ञा पदबंध हैं !

2- सर्वनाम पदबंध - जब एक से अधिक पद एक साथ जुड़कर सर्वनाम का कार्य करें तो उसे सर्वनाम पदबंध कहते  हैं ! इसके शीर्ष में सर्वनाम पद होता है ! जैसे -

    भाग्य की मारी तुम अब कहाँ जाओगी  ।
3- विशेषण पदबंध - जब एक से अधिक पद मिलकर किसी संज्ञा की विशेषता प्रकट करें , उन्हें विशेषण पदबंध  कहते हैं ! इसके शीर्ष में विशेषण होता है ! अन्य पद उस विशेषण पर आश्रित होते हैं ! इसमें प्रमुखतया प्रविशेषण लगता है ! जैसे - 

    मुझे चार किलो पिसी हुई लाल मिर्च ला दो ।

4- क्रिया पदबंध - जब एक से अधिक क्रिया पद मिलकर एक इकाई के रूप में क्रिया का कार्य संपन्न करते हैं , वे क्रिया पदबंध कहलाते हैं ! इस पदबंध के शीर्ष में क्रिया होती है ! 
    जैसे - 
             वह पढ़कर सो गया है ।


5- क्रियाविशेषण पदबंध - जो पदबंध क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं , उन्हें क्रियाविशेषण पदबंध कहते हैं ! इसमें क्रियाविशेषण शीर्ष पर होता है और प्राय: प्रविशेषण आश्रित पद होते हैं ! जैसे - 

    मैं बहुत तेजी से दौड़कर गया ।

Pratyya (Suffixes) (प्रत्यय)



प्रत्यय - प्रत्यय वह शब्दांश है , जिसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता और जो किसी शब्द के पीछे लगकर उसके अर्थ में विशिष्टता या परिवर्तन ला  देते है ! शब्दों के पश्चात जो अक्षर या अक्षर समूह लगाया जाता है उसे प्रत्यय कहते है !

1- कृत प्रत्यय - 

1. अन - मनन , चलन 

2. आ - लिखा , भूला 

3. आव - बहाव , कटाव 

4. इयल - मरियल , अड़ियल 

5. ई - बोली , हँसी 

6. उक - इच्छुक, भिक्षुक 

7. कर - जाकर , गिनकर 

8. औती - मनौती , फिरौती 

9. आवना - डरावना , सुहावना 

10. वाई - सुनवाई , कटवाई 

2- तद्धित प्रत्यय - 

1. ईन - ग्रामीण , कुलीन 

2. त: - अत: , स्वत:

3. आई - पण्डिताई , ठकुराई 

4. क - चमक , धमक 

5. इल - फेनिल , जटिल 

6. सा - ऐसा , वैसा 

7. ऐरा - बहुतेरा , सवेरा 

8. वान - धनवान , गुणवान 

9. ल - शीतल , श्यामल 

10. मात्र - लेशमात्र , रंचमात्र 

Kaarak (Prepositions) (कारक)

                           
कारक 

जो किसी शब्द का क्रिया के  साथ सम्बन्ध बताए  वह कारक है !

कारक के आठ भेद हैं :-

जिनका विवरण इस  प्रकार है :-

 कारक                                                             कारक चिन्ह 

1. कर्ता                                                              ने 

2. कर्म                                                               को 

3. करण                                                             से , के द्वारा 

4. सम्प्रदान                                                        को , के लिए 

5. अपादान                                                         से (अलग करना )  

6. सम्बन्ध                                                         का , की , के 

7. अधिकरण                                                      में , पर 

8. सम्बोधन                                                        हे , अरे               

Anviti in Hindi (अन्विति)




Anviti in Hindi

अन्विति

जब वाक्य के संज्ञा पद के लिंग, वचन, पुरुष, कारक के अनुसार किसी दूसरे पद में समान परिवर्तन हो जाता है तो उसे अन्विति  कहते हैं। 

अन्विति का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से होता है:-

(क) कर्तरि प्रयोग:- जिस में क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्ता के अनुसार होते हैं, क्रिया के उस प्रयोग को कर्तरि प्रयोग कहते हैं। यह ज़रूरी है कि कर्ता विभक्ति रहित हो जैसे गीता पुस्तक पढेगी। 

(ख) कर्मणि प्रयोग:- जिस में क्रिया के लिंग और वचन कर्म के अनुसार हों उसे कर्मणि प्रयोग कहते हैं। कर्मणि प्रयोग में दो प्रकार की वाक्य रचनाएं मिलती हैं। कर्तृवाच्य की जिन भूतकालिक क्रियाओं के कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति लगी होती है जैसे राम ने पत्र लिखा। दूसरे कर्मवाच्य में यहाँ कर्ता के साथ 'से' या 'के द्वारा' परसर्ग लगते हैं लेकिन कर्म के साथ 'को' परसर्ग नहीं लगता जैसे हमसे लड़के गिने गए। 

(ग) भावे प्रयोग: - इसमें क्रिया के पुरुष लिंग और वचन कर्ता या कर्म के अनुसार न होकर सदा अन्य पुरुष पुल्लिंग एकवचन में ही रहते हैं। तीनों वाक्यों की क्रियाएं भावे प्रयोग में देखी जाती हैं।      

उदाहरण (भाववाच्य) :-

मुझसे हंसा गया।
तुम सब से हंसा गया। 
उन सब से हंसा गया।  

उदाहरण (कर्तृवाच्य) :-

राम ने भाई को पढ़ाया।
हमने बहन को पढ़ाया।
राम ने सब को पढ़ाया। 

उदाहरण (कर्मवाच्य) :-

अध्यापक द्वारा पुत्र को पढ़ाया गया।
अध्यापक द्वारा पुत्री को पढ़ाया गया। 
अध्यापकों द्वारा बच्चों को पढ़ाया गया।


इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कर्तृवाच्य में क्रिया के कर्तरि, कर्मणि और भावे तीनों प्रयोग होते हैं। कर्मवाच्य में क्रिया कर्मणि और भावे प्रयोग में ही आती हैं जबकि भाववाच्य में क्रिया का केवल भावे प्रयोग ही होता है। 

Alppraan and Mahapraan Alphabets (अल्पप्राण और महाप्राण)


अल्पप्राण और महाप्राण :- जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से कम श्वास निकले उन्हें  'अल्पप्राण ' कहते हैं ! और जिनके उच्चारण में अधिक श्वास निकले उन्हें ' महाप्राण 'कहते हैं!
ये वर्ण इस प्रकार है - 


      अल्पप्राण                          महाप्राण

     क , ग , ङ                          ख , घ 

     च , ज , ञ                         छ , झ 

     ट , ड , ण                          ठ , ढ 

     त , द , न                          थ , ध 

     प , ब , म                          फ , भ 

     य , र , ल , व                      श , ष , स , ह 

Ling (Gender) (लिंग)




 लिंग :-



संज्ञा के जिस रूप से किसी जाति  का बोध होता है ,उसे लिंग कहते हैं !



इसके दो भेद होते हैं :-



1-  पुल्लिंग :-  जिस संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है , उसे पुल्लिंग कहते हैं -  जैसे - बेटा , राजा  आदि !



2-  स्त्रीलिंग :-  जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का  बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं -  जैसे -  बेटी , रानी आदि !



स्त्रीलिंग प्रत्यय -



पुल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग बनाने के लिए कुछ प्रत्ययों को शब्द में जोड़ा जाता है जिन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं ! जैसे - 



1.   =   बड़ा - बड़ी , भला - भली 



2.  इनी =  योगी - योगिनी , कमल - कमलिनी 



3.  इन =   धोबी - धोबिन , तेली - तेलिन 



4.  नी =   मोर - मोरनी , चोर - चोरनी 



5.  आनी =  जेठ - जेठानी , देवर - देवरानी 



6.  आइन =   ठाकुर - ठकुराइन , पंडित - पंडिताइन 



7.  इया =   बेटा - बिटिया , लोटा - लुटिया 





कुछ शब्द अर्थ की द्रष्टि से समान होते हुए भी लिंग की द्रष्टि से भिन्न होते हैं ! उनका उचित प्रयोग करना चाहिए !जैसे -               




      पुल्लिंग                        स्त्रीलिंग 

                     
1.   कवि                            कवयित्री 



2.   विद्वान                          विदुषी 



3.   नेता                             नेत्री 



4.   महान                           महती 



5.   साधु                             साध्वी 



(  ऊपर दिए गए  शब्दों का सही प्रयोग करने पर ही शुद्ध वाक्य बनता है !  )



जैसे :-   1-  वह एक विद्वान लेखिका है -   (  अशुद्ध वाक्य  )

                 
                 वह एक विदुषी लेखिका है -   (   शुद्ध वाक्य    )

Ghosh and Aghosh Alphabets (घोष और अघोष)



घोष और अघोष :- ध्वनि की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियाँ झंकृत होती है , उन्हें ' घोष ' कहते है और जिनमें स्वरतन्त्रियाँ झंकृत नहीं होती उन्हें ' अघोष ' व्यंजन कहते हैं ! ये घोष - अघोष व्यंजन इस प्रकार हैं - 

       घोष                         अघोष

   ग , घ ,  ङ                    क , ख 
  
   ज , झ ,  ञ                   च , छ 

   ड , द , ण , ड़ , ढ़            ट , ठ 

   द , ध , न                      त , थ 

   ब , भ , म                      प , फ 

   य , र , ल , व , ह             श , ष , स 

Visheshan (Adjectives) (विशेषण)


विशेषण

जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है उसे विशेषण कहते हैं। 

जैसे: मोटा आदमी, नीला आसमान आदि। 

विशेषण के चार भेद होते हैं: 

1. गुणवाचक विशेषण : जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु  के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्तिथि, स्वभाव, दशा, दिशा, स्पर्श, गंध, स्वाद आदि का बोध कराये, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं, जैसे काला, गोरा, अच्छा, सुंदर, ख़राब, गीला , रोगी, छोटा, कठोर, कोमल ,  खट्टा , नमकीन, बिहारी, सुगन्धित आदि। 

2. परिमाणवाचक विशेषण: वह विशेषण जो अपने विशेष्यों की निश्चित या अनिश्चित मात्रा का बोध कराए। 
     इसके दो भेद होते हैं 
     1. निश्चित परिमाणवाचक विशेषण:- जहाँ नाप, तोल या माप निश्चित हो, जैसे एक किलो चीनी, दोमीटर कपडा। 
     2. अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण: :- जहाँ नाप, तोल या माप अनिश्चित हो जैसे थोड़ी चीनी, कुछलकड़ी। 
3. संख्यावाचक विशेषण :- संख्या संबंधी विशेषता बताने वाले शब्दों को संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
     ये दो प्रकार के होते हैं:
     1. निश्चित संख्यावाचक विशेषण: जहाँ संख्या निश्चित हो, जैसे पांच लड़के, दो छात्र। 
     2. अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण: जहाँ संख्या अनिश्चित हो जैसे सैंकड़ों लोग, अनेक लडकियां।
4. सार्वनामिक विशेषण :- वे सर्वनाम शब्द जो संज्ञा शब्द से पहले आकर उसकी विशेषता बताते हैं, सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं, जैसे 
     कौन लोग आये हैं ? 

Hindi as Rajbhasha (हिंदी राजभाषा के रूप में)




 Hindi as Rajbhasha

1- राष्ट्रभाषा - किसी देश के बहुसंख्यक लोगों की भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है । भारत के बहुसंख्यक लोग हिंदी को बोलते -समझते हैं ,अत: भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है ! यह भाषा अन्य किसी भी भारतीय भाषा की तुलना में अधिक लोगों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है , इसलिए हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा कही जाती है !

2- राजभाषा - राजभाषा का अर्थ है - सरकारी कामकाज की भाषा । जो भाषा संविधान द्वारा सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकृत होती है , उसे उस देश की राजभाषा कहते हैं ! भारत में हिंदी को संविधान की धारा 343  अध्याय -1 भाग -17 के अनुसार राजभाषा घोषित किया जा चुका है ! इसके अनुसार - " संघ की भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । "

3- हिन्दी दिवस - भारत की संविधान निर्मात्री सभा ने 14 सितम्बर , 1949 को निर्णय लिया कि हिंदी भारत संघ की राजभाषा होगी । तब से प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है !

Hindi Chhand (छंद)



छंद       (Chhand)


                    
छंद -   अक्षरों की संख्या एवं क्रम ,मात्रा गणना तथा यति -गति के सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पघरचना ' छंद ' कहलाती है ! 

छंद के अंग इस प्रकार है - 

1 . चरण - छंद में प्राय: चार चरण होते हैं ! पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहा जाता है ! 

2 . मात्रा और वर्ण - मात्रिक छंद में मात्राओं को गिना जाता है ! और वार्णिक छंद में वर्णों को !  दीर्घ स्वरों के उच्चारण में ह्वस्व स्वर की तुलना में दुगुना समय लगता है ! ह्वस्व स्वर की एक मात्रा एवं दीर्घ स्वर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं ! वार्णिक छंदों में वर्णों की गिनती की जाती है !

3 . लघु एवं गुरु - छंद शास्त्र में ये दोनों वर्णों के भेद हैं ! ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है ! ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ' । ' है ! जबकि दीर्घ का चिन्ह  ' s ' है !         

= लघु - अ ,इ ,उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु गिने जाते हैं ! 

= गुरु - आ ,ई ,ऊ ,ऋ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार ,विसर्ग युक्त वर्ण गुरु होते हैं ! संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण भी गुरु गिना जाता है ! 

4 . संख्या और क्रम - मात्राओं एवं वर्णों की गणना को संख्या कहते हैं तथा लघु -गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं ! 

5 . गण - तीन वर्णों का एक गण होता है ! वार्णिक छंदों में गणों की गणना की जाती है ! गणों की संख्या आठ है ! इनका एक सूत्र है - 

              ' यमाताराजभानसलगा '
                                     
इसके आधार पर गण ,उसकी वर्ण योजना ,लघु -दीर्घ आदि की जानकारी आसानी से हो जाती है ! 

      गण का नाम             उदाहरण           चिन्ह 

1 .  यगण                      यमाता             ISS

2    मगण                      मातारा             SSS

3 .  तगण                       ताराज             SSI

4 .  रगण                        राजभा            SIS

5 .  जगण                       जभान            ISI

6 .  भगण                       भानस            SII

7 .  नगण                       नसल              III

8 .  सगण                       सलगा            IIS

6. यति -गति -तुक -  यति का अर्थ विराम है , गति का अर्थ लय है ,और तुक का अर्थ अंतिम वर्णों की आवृत्ति है ! चरण के अंत में तुकबन्दी के लिए समानोच्चारित शब्दों का प्रयोग होता है ! जैसे - कन्त ,अन्त ,वन्त ,दिगन्त ,आदि तुकबन्दी वाले शब्द हैं , जिनका प्रयोग करके छंद की रचना की जा सकती है ! यदि छंद में वर्णों एवं मात्राओं का सही ढंग से प्रयोग प्रत्येक चरण से हुआ हो तो उसमें स्वत: ही ' गति ' आ जाती है ! 

- छंद के दो भेद है - 

1 . वार्णिक छंद - वर्णगणना के आधार पर रचा गया छंद वार्णिक छंद कहलाता है ! ये दो प्रकार के होते हैं - 
क . साधारण - वे वार्णिक छंद जिनमें 26 वर्ण तक के चरण होते हैं ! 
ख . दण्डक - 26 से अधिक वर्णों वाले चरण जिस वार्णिक छंद में होते हैं उसे दण्डक कहा जाता है ! घनाक्षरी में 31 वर्ण होते हैं अत: यह दण्डक छंद का उदाहरण है ! 

2 . मात्रिक छंद - मात्राओं की गणना पर आधारित छंद मात्रिक छंद कहलाते हैं ! यह गणबद्ध नहीं होता ।  दोहा और चौपाई मात्रिक छंद हैं ! 

प्रमुख छंदों का परिचय:

1 . चौपाई - यह मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं . प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं . पहले चरण की तुक दुसरे चरण से तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है . प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए।  जैसे :

 I I  I I  S I   S I   I I   S I I    I I   I S I   I I   S I  I S I I
जय हनुमान ग्यान गुन सागर । जय कपीस तिहु लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बलधामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।। 
S I  SI   I I I I    I I S S     S I I   SI  I I I  I I   S S

2. दोहा - यह मात्रिक अर्द्ध सम छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं . यति चरण में अंत में होती है . विषम चरणों के अंत में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए। सम चरणों में तुक भी होनी चाहिए। जैसे - 

 S  I I  I I I   I S I  I I    I I   I I   I I I   I S I
 श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
 बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।। 
 I I I I  I I I I  I I I    I I    S  S I I   I I   S I

3. सोरठा - यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है !इसके विषम चरणों में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं ! तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है ! इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है ! 
जैसे - 

SI  SI   I I  SI    I S  I I I   I I S I I I 
कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन । 
जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥ 
 S I  S I  I I  S I    I I I  I S  S I I  I I I   

4. कवित्त - वार्णिक समवृत्त छंद जिसमें 31 वर्ण होते हैं ! 16 - 15 पर यति तथा अंतिम वर्ण गुरु होता है ! जैसे - 

सहज विलास हास पियकी हुलास तजि , = 16  मात्राएँ 
दुख के  निवास  प्रेम  पास  पारियत है !  = 15 मात्राएँ 

कवित्त को घनाक्षरी भी कहा जाता है ! कुछ लोग इसे मनहरण भी कहते हैं ! 

5 . गीतिका - मात्रिक सम छंद है जिसमें 26 मात्राएँ होती हैं ! 14 और 12 पर यति होती है तथा अंत में लघु -गुरु का प्रयोग है ! जैसे - 

मातृ भू सी मातृ भू है , अन्य से तुलना नहीं  । 

6 . द्रुत बिलम्बित - वार्णिक समवृत्त छंद में कुल 12 वर्ण होते हैं ! नगण , भगण , भगण,रगण का क्रम रखा जाता है !  जैसे - 

न जिसमें कुछ पौरुष हो यहां 
सफलता वह पा सकता कहां  ? 

7 . इन्द्रवज्रा - वार्णिक समवृत्त , वर्णों की संख्या 11 प्रत्येक चरण में दो तगण ,एक जगण और दो गुरु वर्ण । जैसे - 

होता उन्हें केवल धर्म प्यारा ,सत्कर्म ही जीवन का सहारा  । 

8 . उपेन्द्रवज्रा - वार्णिक समवृत्त छंद है ! इसमें वर्णों की संख्या प्रत्येक चरण में 11 होती है । गणों का क्रम है - जगण , तगण ,जगण और दो गुरु । जैसे - 

बिना विचारे जब काम होगा ,कभी न अच्छा परिणाम होगा । 

9 . मालिनी - वार्णिक समवृत्त है , जिसमें 15 वर्ण होते हैं ! 7 और 8 वर्णों के बाद यति होती है। 
गणों का क्रम नगण ,नगण, भगण ,यगण ,यगण । जैसे - 

पल -पल जिसके मैं पन्थ को देखती थी  । 
निशिदिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती  ॥ 

10 . मन्दाक्रान्ता - वार्णिक समवृत्त छंद में 17 वर्ण भगण, भगण, नगण ,तगण ,तगण और दो गुरु वर्ण के क्रम में होते हैं । यति 10 एवं 7 वर्णों पर होती है ! जैसे - 

कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो  । 
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही  । 
धीरे -धीरे सम्भल रखना औ उन्हें यों बताना  । 
पीला होना प्रबल दुःख से प्रेषिता सा हमारा  ॥ 

11 . रोला - मात्रिक सम छंद है , जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती  हैं तथा 11 और 13 पर यति होती है ! प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं ! दो -दो चरणों में तुक आवश्यक है ! जैसे - 

 I I   I I   SS   I I I    S I    S S I   I I I  S 
नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में । 
रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में ॥ 
I I I   S I S   SI   SI  I I  SI  I I I  S     


12 . बरवै - यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है जिसके विषम चरणों में 12 और सम चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं ! यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है ! सम चरणों के अन्त में जगण या तगण होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है ! जैसे - 

S I   SI   I  I   S I I     I S  I S I
वाम अंग शिव शोभित , शिवा उदार । 
सरद सुवारिद में जनु , तड़ित बिहार ॥ 
I I I  I S I I   S  I I    I I I   I S I      

13 . हरिगीतिका - यह मात्रिक सम छंद हैं ! प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं ! यति 16    और 12 पर होती है तथा अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है ! जैसे - 

कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए । 
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥ 
 I I   S  IS   S  SI  S S  S  IS  S I I   IS

14. छप्पय - यह मात्रिक विषम छंद है ! इसमें छ: चरण होते हैं - प्रथम चार चरण रोला के अंतिम दो चरण उल्लाला के ! छप्पय में उल्लाला के सम -विषम चरणों का यह योग 15 + 13 = 28 मात्राओं वाला अधिक प्रचलित है ! जैसे - 

I S  I S I    I S I   I  I I S  I I  S  I I  S
रोला की पंक्ति (ऐसे चार चरण ) - जहां स्वतन्त्र विचार न बदलें मन में मुख में उल्लाला की पंक्ति (ऐसे दो चरण ) - सब भांति सुशासित हों जहां , समता के सुखकर नियम  । 
I I   S I   I S I I    S   I S    I I S  S   I I I I   I I I 

15. सवैया - वार्णिक समवृत्त छंद है ! एक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते हैं ! इसके कई भेद हैं ! जैसे - 

(1) मत्तगयंद (2)  सुन्दरी सवैया (3)  मदिरा सवैया  (4)  दुर्मिल सवैया  (5)  सुमुखि सवैया   (6)किरीट सवैया (7)  गंगोदक सवैया (8)  मानिनी सवैया  (9)  मुक्तहरा सवैया (10)  बाम सवैया  (11)  सुखी सवैया (12)  महाभुजंग प्रयात  

यहाँ मत्तगयंद सवैये का उदाहरण प्रस्तुत है - 

सीख पगा न झगा तन में प्रभु जाने को आहि बसै केहि ग्रामा  । 
धोती फटी सी लटी दुपटी अरु पांव उपानह की नहिं सामा  ॥ 
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक रहयो चकिसो वसुधा अभिरामा  । 
पूछत दीन दयाल को धाम बतावत आपन नाम सुदामा  ॥  

यहाँ ' को ' शब्द को ह्वस्व पढ़ा जाएगा तथा उसकी मात्रा भी एक ही गिनी जाती है ! मत्तगयंद सवैये में 23 अक्षर होते हैं ! प्रत्येक चरण में सात भगण ( SII ) और अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं तथा चारों चरण तुकान्त होते हैं ! 

16. कुण्डलिया - मात्रिक विषम संयुक्त छंद है जिसमें छ: चरण होते हैं! इसमें एक दोहा और एक रोला होता है ! दोहे का चौथा चरण रोला के प्रथम चरण में दुहराया जाता है तथा दोहे का प्रथम शब्द ही रोला के अंत में आता है ! इस प्रकार कुण्डलिया का प्रारम्भ जिस शब्द से होता है उसी से इसका अंत भी होता है ! जैसे - 

SS   I I S  S I  S   I I S  I  SS  S I
सांई अपने भ्रात को ,कबहुं न दीजै त्रास  । 
पलक दूरि नहिं कीजिए , सदा राखिए पास  ॥ 
सदा राखिए पास , त्रास कबहुं नहिं दीजै  । 
त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुनि लीजै  ॥ 
कह गिरिधर कविराय राम सौं मिलिगौ जाई  । 
पाय विभीषण राज लंकपति बाज्यौ सांई  ॥ 
S I   I S I I   S I  S I I I    S S   S S     

Dhaatu (Stem) (धातु)



धातु -

क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं !जैसे - पढ़ , लिख , आ ,खा , जा , सो , हंस ! 'पढ़' धातु  से अनेक क्रिया रूप बनते हैं ! जैसे - पढ़ा , पढ़ता है , पढ़ना , पढ़ा था , पढ़िए ! इनमें पढ़ एक ऐसा अंश है , जो सभी रूपों में मिल रहा है ! इस  समान रूप से मिलने वाले अंश को धातु या क्रिया धातु कहते हैं !


धातु के भेद इस प्रकार हैं - 

1. सामान्य ( मूल ) धातु -  सामान्य , मूल या रूढ़ क्रिया धातुएं रूढ़ शब्द के रूप में प्रचलित हैं! यौगिक अथवा व्युत्पन्न न होने के कारण ही इन्हें सामान्य या सरल धातुएं भी कहते हैं ;
    जैसे - सुनना , खेलना , लिखना , जाना , खाना आदि !


2. व्युत्पन्न धातु -  जो धातुएं किसी मूल धातु में प्रत्यय लगा कर अथवा मूल धातु को किसी अन्य प्रकार से बदलकर बनाई जाती हैं , उन्हें व्युत्पन्न धातुएं कहते हैं ! जैसे -


    मूल रूप      व्युत्पन्न धातु ( प्रेरणार्थक )              व्युत्पन्न ( अकर्मक )

1.  काटना              कटवाना                                             कटना 

2.  खाना                 खिलाना                                        खिलवाना                         

3.  खोलना             खुलवाना                                             खुलना 

-  मूल धातुएं अकर्मक होती हैं , या सकर्मक ! मूल अकर्मक धातुओं से प्रेरणार्थक अथवा  सकर्मक धातुएं व्युत्पन्न होती हैं !


3.  नाम धातु -  संज्ञा , सर्वनाम और विशेषण शब्दों के पीछे प्रत्यय लगाकर जो क्रिया धातुएं बनती हैं , उन्हें नाम धातु क्रिया कहते हैं , जैसे -


-  संज्ञा शब्दों से - लाज से लजाना , बात से बतियाना !  हिनहिन से हिनहिनाना ,  
-  विशेषण शब्दों से -  गर्म से गर्माना , मोटा से मुटाना  !

-  सर्वनाम से -    अपना से अपनाना  !

4.  मिश्र धातु -  जिन संज्ञा , विशेषण और क्रिया विशेषण शब्दों के बाद  ' करना '  यह होना जैसे क्रिया पदों के प्रयोग से जो नई क्रिया धातुएं बनती हैं , उन्हें मिश्र धातुएं कहते हैं 

1.  होना या करना  - काम करना , काम होना !


2.  देना -  धन देना , उधार देना !

3.  खाना  -  मार खाना , हवा खाना !

4.  मारना -  गोता मारना , डींग मारना !

5.  लेना -  जान लेना , खा लेना !


6.  जाना -  पी जाना , सो जाना !

7.  आना -  याद आना , नजर आना !

5-  अनुकरणात्मक धातु -  जो धातुएं किसी ध्वनि के अनुकरण पर बनाई जाती हैं , अनुकरणात्मक धातुएं कहते हैं ! जैसे - 
     टनटन - टनटनाना , चटकना , पटकना , खटकना धातुएं भी अनुकरणात्मक धातुओं के अंतर्गत आती हैं !                                                                                                   

Hindi Dialects (हिंदी की बोलियाँ)




Hindi Dialects  (हिंदी की बोलियाँ )

भाषा - भाषा वह साधन है , जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर , लिखकर या संकेतों द्वारा अपने मन के भावों एवं विचारों का आदान -प्रदान करता है !
भाषा के दो भेद हैं : -

1- मौखिक 
2- लिखित 

मौखिक रूप भाषा का अस्थायी रूप है लेकिन लिखित रूप स्थायी है !

लिपि - ध्वनियों को अंकित करने के लिए निश्चित किए गए प्रतीक चिन्हों की व्यवस्था को लिपि कहते है ! लिखित रूप भाषा को मानकता प्रदान करता है ! समाज को एक दूसरे से जोड़ने  में भाषा के लिखित रूप का महत्वपूर्ण योगदान है ! 

हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है !

भाषा परिवार - भारत में दो भाषा परिवार अधिकांशत: प्रचलित है -

1- भारत यूरोपीय परिवार - उत्तर भारत में बोली जाने वाली भाषाएं ।

2- द्रविड़ भाषा परिवार - तमिल , तेलगू , मलयालम , कन्नड़ ।




बोली - भाषा के सीमित क्षेत्रीय रूप को बोली कहते हैं। एक भाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ हो 
सकती हैं । जबकि एक बोली में कई भाषाएँ नहीं होती ! जिस रूप में आज हिंदी भाषा बोली व समझी जाती है वह खड़ी बोली का ही साहित्यिक भाषा रूप है ! 13 वीं -14 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमीर खुसरो ने पहली बार खड़ी बोली में कविता रची ! ब्रजभाषा को सूरदास ने , अवधी को तुलसीदास ने और मैथिली को विधापति ने चरमोत्कर्ष पर  पहुँचाया !

हिंदी का क्षेत्र उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश ,हरियाणा , उत्तरांचल , उत्तरप्रदेश , बिहार ,झारखंड , छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश ,राजस्थान , दिल्ली तथा दक्षिण में अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक है ! इसके अलावा पंजाब ,महाराष्ट्र , गुजरात ,बंगाल आदि भागों में सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है !

हिंदी की बोलियाँ =

1- पूर्वी हिंदी - इसका विकास अर्धमागधी अपभ्रंश से हुआ । इसके अंतर्गत अवधी , बघेली व छत्तीसगढ़ी बोलियाँ आती है । अवधी में तुलसीदास ने प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस व जायसी ने पदमावत की रचना की ! 

2- पश्चिमी हिंदी = इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ । इसके अंतर्गत ब्रजभाषा , खड़ी बोली , हरियाणवी , बुंदेली और कन्नौजी आती है। ब्रजभाषा का क्षेत्र मथुरा , अलीगढ़ के पास है । सूरदास ने इसे चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया ।  खड़ी बोली दिल्ली , मेरठ , बिजनौर , मुजफ्फरनगर , रामपुर ,मुरादाबाद और सहारनपुर के आसपास बोली जाती थी ।  बुन्देली का क्षेत्र झाँसी , ग्वालियर व बुन्देलखण्ड के आसपास है । कन्नौजी क्षेत्र कन्नौज , कानपुर , पीलीभीत आदि । हिसार ,जींद ,रोहतक ,करनाल आदि जिलों में बांगरू भाषा बोली जाती है ! 

3- राजस्थानी हिंदी - इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ । इसके अंतर्गत मेवाड़ी ,मेवाती, मारवाड़ी और हाडौती बोलियाँ है । मेवाड़ी क्षेत्र मेवाड़ के आसपास है । मारवाड़ी का क्षेत्र जोधपुर , अजमेर , जैसलमेर ,बीकानेर  आदि है । मेवाती का क्षेत्र उत्तरी राजस्थान ,अलवर ,भरतपुर तथा हरियाणा में गुडगाँव के आसपास है । हाडौती राजस्थान के पूर्वी भाग व जयपुर के आसपास की बोली है !

4- बिहारी - इसके अंतर्गत भोजपुरी , मगही व मैथिली बोलियाँ है । भोजपुरी का क्षेत्र भोजपुर , बनारस ,जौनपुर ,मिर्जापुर ,बलिया ,गोरखपुर ,चम्पारन आदि तक है । मगही का क्षेत्र पटना, गया , हजारीबाग ,मुंगेर व भागलपुर के आसपास की बोली है । मैथिली का क्षेत्र मिथिला ,दरभंगा , मुजफ्फरपुर , पूर्णिया तथा मुंगेर में बोली जाती है । अब मैथिली को आठवीं अनुसूची में एक अलग भाषा के रूप में मान्यता दे दी गई है !

5- पहाड़ी - इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है । इसकी प्रमुख बोलियाँ गढवाली , कुमायूँनी , नेपाली हैं ! 

Alankaar (Figure of Speech) (अलंकार)





अलंकार -  " काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व अलंकार कहे जाते हैं ! "

अलंकार के तीन भेद हैं - 

1. शब्दालंकार -  ये शब्द पर आधारित होते हैं ! प्रमुख शब्दालंकार हैं -  अनुप्रास , यमक , शलेष , पुनरुक्ति , वक्रोक्ति  आदि !

2. अर्थालंकार -  ये अर्थ पर आधारित होते हैं !  प्रमुख अर्थालंकार हैं -  उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक , विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास , भ्रांतिमान  आदि !

3.उभयालंकार- उभयालंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं!


1- उपमा - जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है   
     जैसे - 
              हरिपद कोमल कमल से  ।

हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से कोमलता के कारण की गई ! अत: उपमा अलंकार है !

2-  रूपक - जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता है ! जैसे -

                   अम्बर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा नागरी  ।

आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही है ! यहाँ आकाश पर पनघट का , उषा पर स्त्री का और तारा पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है !

3- उत्प्रेक्षा - उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ! 
     जैसे - 
                मुख मानो चन्द्रमा है ।

यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है ! यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है !
इस अलंकार की पहचान मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से होती है !

4- यमक - जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँ यमक अलंकार होता है ! जैसे -

                      सजना है मुझे सजना के लिए  ।

यहाँ पहले सजना का अर्थ है - श्रृंगार करना और दूसरे सजना का अर्थ - नायक शब्द दो बार प्रयुक्त है ,अर्थ अलग -अलग हैं ! अत: यमक अलंकार है !

5- शलेष - जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है ! जैसे -

              रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून  ।
              पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून  ।।

यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं - कान्ति , आत्म - सम्मान  और जल  ! अत: शलेष अलंकार है , क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन हैं !

6- विभावना - जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो रहा हो , वहां विभावना अलंकार है !जैसे -

                        बिनु पग चलै सुनै बिनु काना 

वह ( भगवान ) बिना पैरों  के चलता है और बिना कानों के सुनता है ! कारण के अभाव में कार्य होने से यहां विभावना अलंकार है !

7- अनुप्रास -  जहां किसी  वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति  हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है ! जैसे - 

                    भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया  । 

' भ ' की आवृत्ति  अनेक बार होने से यहां अनुप्रास अलंकार है !

8- भ्रान्तिमान - उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से और तदनुरूप क्रिया होने से भ्रान्तिमान अलंकार होता है ! जैसे -

नाक का मोती अधर की कान्ति से , बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,  
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,  सोचता है अन्य शुक यह कौन है ?

यहां नाक में तोते का और दन्त  पंक्ति में अनार के दाने का भ्रम हुआ है , यहां भ्रान्तिमान अलंकार है !

9- सन्देह - जहां उपमेय के लिए  दिए गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निशचय न हो सके, वहां सन्देह अलंकार होता है !जैसे -

          सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ।
          सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है 

10- व्यतिरेक - जहां कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई गई हो , वहां व्यतिरेक अलंकार होता है !जैसे -

          का सरवरि तेहिं देउं मयंकू । चांद कलंकी वह निकलंकू ।।

मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूं ? चन्द्रमा में तो कलंक है , जबकि मुख निष्कलंक है !

11- असंगति - कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार होता है ! जैसे -

                      हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै ।

घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं , पर पीड़ा राम को है , अत: असंगति अलंकार है !

12- प्रतीप - प्रतीप का अर्थ है उल्टा या विपरीत । यह उपमा अलंकार के विपरीत होता है । क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित , पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है ! जैसे - 

               सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक ।

सीताजी के मुख ( उपमेय )की तुलना बेचारा चन्द्रमा ( उपमान )नहीं कर सकता । उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां प्रतीप अलंकार है !

13- दृष्टान्त - जहां उपमेय , उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है,जैसे-
             बसै बुराई जासु तन ,ताही को सन्मान ।
             भलो भलो कहि छोड़िए ,खोटे ग्रह जप दान ।।

यहां पूर्वार्द्ध में उपमेय वाक्य और उत्तरार्द्ध में उपमान वाक्य है ।इनमें ' सन्मान होना ' और ' जपदान करना ' ये दो भिन्न -भिन्न धर्म कहे गए हैं । इन दोनों में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव है । अत: दृष्टान्त अलंकार है ! 

14- अर्थान्तरन्यास - जहां सामान्य कथन का विशेष से या विशेष कथन का सामान्य से समर्थन किया जाए , वहां अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है ! जैसे -

              जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग ।
              चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग ।।

15- विरोधाभास - जहां वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास मालूम पड़े , वहां विरोधाभास अलंकार होता है ! जैसे -

              या अनुरागी चित्त की गति समझें नहीं कोइ ।
              ज्यों -ज्यों बूडै स्याम रंग त्यों -त्यों उज्ज्वल होइ ।।

यहां स्याम रंग में डूबने पर भी उज्ज्वल होने में विरोध आभासित होता है , परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । अत: विरोधाभास अलंकार है ! 

16- मानवीकरण - जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है , वहां मानवीकरण अलंकार है ! जैसे -

              फूल हंसे कलियां मुसकाई ।

यहां फूलों का हंसना , कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएं हैं , अत: मानवीकरण अलंकार है!

17- अतिशयोक्ति - अतिशयोक्ति का अर्थ है - किसी बात को बढ़ा -चढ़ाकर कहना । जब काव्य में कोई बात बहुत बढ़ा -चढ़ाकर कही जाती है तो वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है !जैसे -

                           लहरें व्योम चूमती उठतीं ।

यहां लहरों को आकाश चूमता हुआ दिखाकर अतिशयोक्ति का विधान किया गया है !

18- वक्रोक्ति - जहां किसी वाक्य में वक्ता के आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाती है , वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है !    
    - इसके दो भेद होते हैं - (1 ) काकु वक्रोक्ति   (2) शलेष वक्रोक्ति  ।   

1- काकु वक्रोक्ति - वहां होता है जहां वक्ता के कथन का कण्ठ ध्वनि के कारण श्रोता भिन्न अर्थ लगाता है । जैसे -

              मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू ।

2- शलेष वक्रोक्ति - जहां शलेष के द्वारा वक्ता के कथन का भिन्न अर्थ लिया जाता है ! जैसे -

              को तुम हौ इत आये कहां घनस्याम हौ तौ कितहूं बरसो ।
              चितचोर कहावत हैं हम तौ तहां जाहुं जहां धन है सरसों ।।

19- अन्योक्ति - अन्योक्ति का अर्थ है अन्य के प्रति कही गई उक्ति । इस अलंकार में अप्रस्तुत के  माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन किया जाता है ! जैसे -

             नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल ।
             अली कली ही सौं बिध्यौं आगे कौन हवाल  ।।

यहां भ्रमर और कली का प्रसंग अप्रस्तुत विधान के रूप में है जिसके माध्यम से राजा जयसिंह को सचेत किया गया है , अत: अन्योक्ति अलंकार है !

Sangya (Noun) (संज्ञा)




संज्ञा की परिभाषा  - संज्ञा को 'नाम' भी  कहा जाता है .
किसी प्राणी , वस्तु , स्थान , भाव आदि का 'नाम' ही उसकी संज्ञा कही जाती है .
संज्ञा तीन प्रकार की होती है.

१. व्यक्तिवाचक संज्ञा - जो किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु का बोध कराती है, 
यथा - सीता, युमना, आगरा.

२. जातिवाचक संज्ञा  - जो संज्ञा किसी जाति का बोध कराती है 
यथा -नदी , पर्वत 

३. भाववाचक संज्ञा  - किसी भाव , गुण, दशा आदि का बोध कराने वाले शब्द भाववाचक संज्ञा होते  है, 
यथा -मिठास , कालिमा, 

Padbandh (Phrases) (पदबंध)




पदबंध - जब एक से अधिक पद मिलकर एक व्याकरणिक इकाई का काम करते हैं , तब उस बंधी हुई इकाई को पदबंध कहते हैं ! जैसे - सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा जीत गया !


पदबंध के पाँच भेद होते हैं - 

1- संज्ञा पदबंध - जब एक से अधिक पद मिलकर संज्ञा का काम करें ,तो उस पदबंध को संज्ञा पदबंध कहते हैं ! संज्ञा पदबंध के शीर्ष में संज्ञा पद होता है , अन्य सभी पद उस पर आश्रित होते हैं ! जैसे - 

   दीवार के पीछे खड़ा पेड़ गिर गया ।

इस वाक्य में रेखांकित शब्द संज्ञा पदबंध हैं !

2- सर्वनाम पदबंध - जब एक से अधिक पद एक साथ जुड़कर सर्वनाम का कार्य करें तो उसे सर्वनाम पदबंध कहते  हैं ! इसके शीर्ष में सर्वनाम पद होता है ! जैसे -

    भाग्य की मारी तुम अब कहाँ जाओगी  ।
3- विशेषण पदबंध - जब एक से अधिक पद मिलकर किसी संज्ञा की विशेषता प्रकट करें , उन्हें विशेषण पदबंध  कहते हैं ! इसके शीर्ष में विशेषण होता है ! अन्य पद उस विशेषण पर आश्रित होते हैं ! इसमें प्रमुखतया प्रविशेषण लगता है ! जैसे - 

    मुझे चार किलो पिसी हुई लाल मिर्च ला दो ।

4- क्रिया पदबंध - जब एक से अधिक क्रिया पद मिलकर एक इकाई के रूप में क्रिया का कार्य संपन्न करते हैं , वे क्रिया पदबंध कहलाते हैं ! इस पदबंध के शीर्ष में क्रिया होती है ! 
    जैसे - 
             वह पढ़कर सो गया है ।


5- क्रियाविशेषण पदबंध - जो पदबंध क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं , उन्हें क्रियाविशेषण पदबंध कहते हैं ! इसमें क्रियाविशेषण शीर्ष पर होता है और प्राय: प्रविशेषण आश्रित पद होते हैं ! जैसे - 

    मैं बहुत तेजी से दौड़कर गया ।

Viraam Chinha (Punctuation) (विराम चिन्ह)




 विराम चिन्ह 


भाषा में स्थान -विशेष पर रुकने अथवा उतार -चढ़ाव आदि दिखाने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उन्हें ही  ' विराम चिन्ह ' कहते है !
                   
               
1. पूर्ण विराम :-  (  )
                             
 - प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है !

2. उपविराम :-   ( : )

 - उपविराम का प्रयोग संवाद -लेखन एकांकी लेखन या नाटक लेखन में वक्ता के नाम के बाद किया जाता है !   

3. अर्ध विराम :-  ( ; )

  - इसमें उपविराम से भी कम ठहराव होता है ! यदि खंडवाक्य का आरंभ वरन, पर , परन्तु , किन्तु , क्योंकि इसलिए , तो भी आदि शब्दों से हो तो उसके पहले इसका प्रयोग करना चाहिए ! 

4. अल्प विराम :-  ( , )

  - इसमें बहुत कम ठहराव होता है !

5. प्रश्नबोधक :-  ( ? )    

6. विस्मयादिबोधक :-  ( ! )

 - विस्मय , हर्ष , शोक , घृणा , प्रेम आदि भावों को प्रकट करने वाले शब्दों के आगे इसका प्रयोग होता है !

7. निर्देशक चिन्ह :-   ( _ )

8. योजक चिन्ह :-     ( - )

 - द्वन्द्व समास के दो पदों के बीच , सहचर शब्दों के बीच प्रयोग !

9. कोष्ठक चिन्ह :-   ( )

10. उदधरण चिन्ह :-  (  " "  )

11. लाघव चिन्ह :-  ( o )

12. विवरण चिन्ह :-  (  :- )

Hindi Sounds (हिंदी ध्वनियाँ)






हिंदी ध्वनियाँ:-



हिंदी की देवनागरी लिपि में कुल 52 वर्ण हैं। यह वर्णमाला इस प्रकार है:



स्वर :- अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ( कुल = 11)



अनुस्वार:- अं     (कुल  = 1)



विसर्ग:- अ: ( : )  (कुल  = 1)





व्यंजन:- 




कंठ्य :-                                      क , ख, ग, घ, ड़      = 5



तालव्य :-                                   च , छ, ज, झ, ञ     = 5 



मूर्धन्य :-                                    ट , ठ , ड , ढ , ण    = 5



दन्त्य :-                                     त , थ , द , ध , न    = 5



ओष्ठ्य :-                                   प , फ , ब , भ , म   = 5



अन्तस्थ :-                                 य , र , ल , व         = 4



ऊष्म :-                                      श , स , ष , ह        = 4



संयुक्त व्यंजन: -                           क्ष , त्र , ज्ञ , श्र       = 4 



द्विगुण व्यंजन: -                          ड़ , ढ़                    = 2

                                                                   
                                                                     कुल वर्ण: 52





स्वर ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि  की सहायता नहीं ली जाती। वायु मुख विवर में बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, किन्तु व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है।




व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु मुख विवर में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है। 

Kaal (Tenses) (काल)



काल - क्रिया के करने या होने के समय को काल कहते हैं काल के तीन भेद हैं -

1- भूतकाल - ' भूत का अर्थ है - बीता हुआ । क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया का व्यापार पहले समाप्त हो चुका है , वह भूतकाल कहलाता है ; जैसे - 
    सीता ने खाना पकाया । इस वाक्य से क्रिया के समाप्त होने बोध होता है ।   अत: यहां भूतकाल क्रिया का प्रयोग हुआ है !

2- वर्तमान काल - वर्तमान का अर्थ है - उपस्थित अर्थात जिस क्रिया से इस बात की सूचना मिले कि क्रिया का व्यापार अभी भी चल रहा है , समाप्त नहीं हुआ , उसे वर्तमान काल कहते हैं ; जैसे - मोहन गाता है ।

3- भविष्यत काल - भविष्यत का अर्थ है - आने वाला समय । अत: क्रिया के जिस रूप से भविष्यत में क्रिया होने का बोध हो , उसे भविष्यत काल की क्रिया कहते हैं;
    जैसे - सीता कल दिल्ली जाएगी ।  ( गा , गे , गी  भविष्यत काल के परिचायक चिन्ह हैं !)

Kriya (Verb) (क्रिया)




क्रिया :-



जिस शब्द से किसी कार्य का होना या करना समझा जाय , उसे क्रिया कहते हैं ! जैसे - खाना , पीना  , सोना , रहना , जाना आदि !



क्रिया के दो भेद हैं :- 



1- सकर्मक क्रिया :-  जो क्रिया कर्म के साथ आती है , उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं !

    जैसे - मोहन फल खाता है ! ( खाना क्रिया के साथ कर्म फल है  )





 2- अकर्मक क्रिया :-  अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं होता तथा उसका फल कर्ता पर पड़ता है !

     जैसे - राधा रोती है ! ( कर्म का अभाव है तथा रोती है क्रिया का फल राधा पर पड़ता है  )



-  रचना के आधार पर क्रिया के पाँच भेद है :-



1- सामान्य क्रिया :-वाक्य में केवल एक क्रिया का प्रयोग ! जैसे -  तुम चलो , मोहन पढ़ा  आदि !





2- संयुक्त क्रिया :-  दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनी क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ होती है ! जैसे - गीता स्कूल चली गई आदि !




3- नामधातु क्रियाएँ :-  क्रिया को छोड़कर दुसरे शब्दों  ( संज्ञा , सर्वनाम , एवं  विशेषण  ) से जो धातु बनते है , उन्हें नामधातु क्रिया कहते है जैसे -  अपना - अपनाना , गरम - गरमाना  आदि !



4- प्रेरणार्थक क्रिया :-  कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को करने की प्रेरणा देता है  जैसे - लिखवाया ,पिलवाती आदि !



5- पूर्वकालिक क्रिया :-  जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया  ' पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है जैसे -  वे पढ़कर चले गये  ,  मैं नहाकर जाउँगा  आदि !

Vaachya (Voice) (वाच्य)


वाच्य :-





क्रिया के जिस रूपांतर से यह बोध हो कि क्रिया द्वारा किए गए विधान का केंद्र बिंदु कर्ता है , कर्म अथवा क्रिया -भाव , उसे वाच्य कहते हैं !

वाच्य के तीन भेद हैं - 

1- कर्तृवाच्य -  जिसमें कर्ता प्रधान हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं !

    कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्ता के समान होते हैं , जैसे - सीता गाना गाती है , इस वाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है !
     कभी -कभी कर्ता के साथ  ' ने '  चिन्ह नहीं लगाया जाता !

2-  कर्मवाच्य -  जिस वाक्य में कर्म प्रधान होता है , उसे कर्मवाच्य कहते हैं !

    कर्मवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्म के अनुसार होते हैं , जैसे - रमेश से पुस्तक लिखी जाती है ! इसमें केवल  ' सकर्मक ' क्रियाओं का प्रयोग होता है !

3-  भाववाच्य -  जिस वाक्य में भाव प्रधान होता है , उसे भाववाच्य कहते हैं !

     भाववाच्य में क्रिया की प्रधानता रहती है , इसमें क्रिया सदा एक वचन , पुल्लिंग और अन्य पुरुष में आती है ! इसका प्रयोग प्राय: निषेधार्थ में होता है , 
     जैसे - चला नहीं जाता , पीया नहीं जाता !

-  कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना :-


          ( कर्तृवाच्य )                             ( कर्मवाच्य )

1-   रीमा चित्र बनाती है !               -  रीमा द्वारा चित्र बनाया जाता है !

2-   मैंने पत्र लिखा !                     -  मुझसे पत्र लिखा गया !


-  कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना :-

          ( कर्तृवाच्य )                             ( भाववाच्य )

1-   मैं नहीं पढ़ता !                      -   मुझसे पढ़ा नहीं जाता !

2-   राम नहीं रोता है !                  -   राम से रोया नहीं जाता !
  

Hindi Words (शब्द)




शब्द :- भाषा की न्यूनतम इकाई वाक्य है और वाक्य की न्यूनतम इकाई शब्द है .



शब्द समूह :- प्रत्येक भाषा का अपना शब्द समूह होता है। इन शब्दों का प्रयोग भाषा के बोलने एवं लिखने में किया जाता है। सामान्यत: किसी भी भाषा के चार प्रकार के शब्द होते हैं।



1. तत्सम शब्द:- हिंदी में जो शब्द संस्कृत से ज्यों के त्यों ग्रहण कर लिए गए हैं तथा जिनमें कोई ध्वनि परिवर्तन नहीं हुआ है, तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे राजा  ,बालक, लता आदि।


2. तद्भव  शब्द:- तद्भव का शाब्दिक अर्थ है तत + भव अर्थात उससे उत्पन्न। हिंदी में प्रयुक्त वह शब्दावली जो अनेक ध्वनि परिवर्तनों से गुज़रती हुई हिंदी में आई है, तद्भव शब्दावली है। जैसे आग, ऊँट, घोडा आदि।



उदाहरण: 

संस्कृत शब्द                                    तद्भव शब्द 
अग्नि                                                आग
उष्ट्र                                                     ऊँट
घोटक                                                घोड़ा



3. देशज शब्द:- ध्वन्यात्मक अनुकरण पर गढ़े  हुए वे शब्द जिनकी व्युत्पत्ति किसी तत्सम शब्द से नहीं होती, इस वर्ग में आते हैं। हिंदी में प्रयुक्त कुछ देशज शब्द भोंपू , तेंदुआ, थोथा आदि।



4. विदेशी शब्द:- दूसरी भाषाओं से आये हुए शब्द विदेशी शब्द कहे जाते हैं। हिंदी में विदेशी शब्द दो प्रकार के हैं:

- मुस्लिम शासन के प्रभाव से आये हुए
- अरबी फारसी शब्द
- ब्रिटिश शासन के प्रभाव से आये हुए अंग्रेजी शब्द



हिंदी भाषा में लगभग 2500 अरबी शब्द, 3500 फारसी शब्द और 3000 अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं।



उदाहरण:

आदत, इनाम, नशा, अदा, अगर, पाजी, तोप, तमगा , सराय, अफसर, कलेक्टर, कोट,  मेयर, मादाम , पिकनिक , सूप आदि।

Indeclinable (Avyay) (अव्यय ( अविकारी शब्द ))




अव्यय ( अविकारी शब्द )

अविकारी शब्द - जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण ,संबंधबोधक ,समुच्चयबोधक , तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं ! अविकारी शब्दों को अव्यय भी कहा जाता है !

अव्यय - अव्यय वे शब्द हैं जिनमें लिंग ,पुरुष ,काल आदि की दृष्टि से कोई परिवर्तन नहीं होता, जैसे - यहाँ ,कब, और आदि ! अव्यय शब्द पांच प्रकार के होते हैं -

1 - क्रियाविशेषण - धीरे -धीरे , बहुत 
2 - संबंधबोधक - के साथ , तक 
3 - समुच्चयबोधक - तथा , एवं ,और 
4 - विस्मयादिबोधक - अरे ,हे 
5 - निपात - ही ,भी 

1 - क्रियाविशेषण अव्यय - जो अव्यय किसी क्रिया की विशेषता बताते हैं ,वे क्रिया विशेषण कहलाते  हैं , जैसे - मैं बहुत थक गया हूँ । 

     क्रियाविशेषण के चार भेद हैं - 

1 - कालवाचक  क्रियाविशेषण- जिन शब्दों से कालसंबंधी क्रिया की विशेषता का बोध हो , 
    जैसे - कल ,आज ,परसों ,जब ,तब सायं आदि ! ( कृष्ण कल जाएगा । )

2 - स्थानवाचक  क्रियाविशेषण- जो  क्रियाविशेषण क्रिया के होने या न होने के स्थान का बोध कराएँ , 
जैसे - यहाँ ,इधर ,उधर ,बाहर ,आगे ,पीछे ,आमने ,सामने ,दाएँ ,बाएँ आदि 
                              ( उधर मत जाओ । )

3 - परिमाणवाचक  क्रियाविशेषण- जहाँ क्रिया के परिमाण / मात्रा की विशेषता का बोध हो ,
     जैसे - जरा ,थोड़ा , कुछ ,अधिक ,कितना ,केवल आदि ! ( कम खाओ )
             
4 - रीतिवाचक  क्रियाविशेषण- इसमें क्रिया के होने के ढंग का पता चलता है , जैसे - जोर से,
     धीरे -धीरे ,भली -भाँति ,ऐसे ,सहसा ,सच ,तेज ,नहीं ,कैसे ,वैसे ,ज्यों ,त्यों आदि !
     ( वह पैदल चलता है । )

2 - संबंधबोधक अव्यय - जो अविकारी शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के साथ जुड़कर दूसरे शब्दों से उनका संबंध बताते हैं ,संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं , 
जैसे - के बाद , से पहले ,के ऊपर ,के कारण ,से लेकर ,तक ,के अनुसार ,के भीतर ,की खातिर ,के लिए,  के बिना , आदि ! ( विद्या के बिना मनुष्य पशु है । )

3 - समुच्चयबोधक अव्यय - दो शब्दों ,वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं ! 

जैसे - कि ,मानों ,आदि ,और ,अथवा ,यानि ,इसलिए , किन्तु ,तथापि ,क्योंकि ,मगर ,बल्कि आदि ! (मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है । )
     
4 - विस्मयादिबोधक अव्यय - जो अविकारी शब्द हमारे मन के हर्ष ,शोक ,घृणा ,प्रशंसा , विस्मय आदि भावों को व्यक्त करते हैं , उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं ! जैसे - 
     अरे ,ओह ,हाय ,ओफ ,हे  आदि !( इन शब्दों के साथ संबोधन का चिन्ह ( ! ) भी लगाया 
     जाता हैं ! जैसे - हाय राम ! यह क्या हो गया । )

5 - निपात -  जो अविकारी शब्द किसी शब्द या पद के बाद जुड़कर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल भर देते हैं उन्हें निपात कहते हैं ! जैसे - ही ,भी ,तो ,तक ,भर ,केवल/ मात्र ,
     आदि !  ( राम ही लिख रहा है । ) 

One Word Definitions (वाक्यांश के लिए एक शब्द)




One Word Definitions

वाक्यांश के लिए एक शब्द :


  1. जिसका जन्म नहीं होता - अजन्मा 
  2. पुस्तकों की समीक्षा करने वाला - समीक्षक , आलोचक 
  3. जिसे गिना न जा सके - अगणित 
  4. जो कुछ भी नहीं जानता हो - अज्ञ 
  5. जो बहुत थोड़ा जानता हो - अल्पज्ञ 
  6. जिसकी आशा न की गई हो - अप्रत्याशित 
  7. जो इन्द्रियों से परे हो - अगोचर 
  8. जो विधान के विपरीत हो - अवैधानिक 
  9. जो संविधान के प्रतिकूल हो - असंवैधानिक 
  10. जिसे भले -बुरे का ज्ञान न हो - अविवेकी 
  11. जिसके समान कोई दूसरा न हो - अद्वितीय 
  12. जिसे वाणी व्यक्त न कर सके - अनिर्वचनीय 
  13. जैसा पहले कभी न हुआ हो - अभूतपूर्व 
  14. जो व्यर्थ का व्यय करता हो - अपव्ययी 
  15. बहुत कम खर्च करने वाला - मितव्ययी 
  16. सरकारी गजट में छपी सूचना - अधिसूचना 
  17. जिसके पास कुछ भी न हो - अकिंचन 
  18. दोपहर के बाद का समय - अपराह्न 
  19. जिसका निवारण न हो सके - अनिवार्य 
  20. देहरी पर रंगों से बनाई गई चित्रकारी - अल्पना 
  21. आदि से अन्त तक - आघन्त 
  22. जिसका परिहार करना सम्भव न हो - अपरिहार्य 
  23. जो ग्रहण करने योग्य न हो - अग्राह्य 
  24. जिसे प्राप्त न किया जा सके - अप्राप्य 
  25. जिसका उपचार सम्भव न हो - असाध्य 
  26. भगवान में विश्वास रखने वाला - आस्तिक 
  27. भगवान में विश्वास न  रखने वाला- नास्तिक 
  28. आशा से अधिक - आशातीत 
  29. ऋषि की कही गई बात - आर्ष 
  30. पैर से मस्तक तक - आपादमस्तक 
  31. अत्यंत लगन एवं परिश्रम वाला - अध्यवसायी 
  32. आतंक फैलाने वाला - आंतकवादी 
  33. देश के बाहर से कोई वस्तु मंगाना - आयात 
  34. जो तुरंत कविता बना सके - आशुकवि 
  35. नीले रंग का फूल - इन्दीवर 
  36. उत्तर -पूर्व का कोण - ईशान 
  37. जिसके हाथ में चक्र हो - चक्रपाणि 
  38. जिसके मस्तक पर चन्द्रमा हो - चन्द्रमौलि 
  39. जो दूसरों के दोष खोजे - छिद्रान्वेषी 
  40. जानने की इच्छा - जिज्ञासा 
  41. जानने को इच्छुक - जिज्ञासु 
  42. जीवित रहने की इच्छा- जिजीविषा 
  43. इन्द्रियों को जीतने वाला - जितेन्द्रिय 
  44. जीतने की इच्छा वाला - जिगीषु 
  45. जहाँ सिक्के ढाले जाते हैं - टकसाल 
  46. जो त्यागने योग्य हो - त्याज्य 
  47. जिसे पार करना कठिन हो - दुस्तर 
  48. जंगल की आग - दावाग्नि
  49. गोद लिया हुआ पुत्र - दत्तक 
  50. बिना पलक झपकाए हुए - निर्निमेष 
  51. जिसमें कोई विवाद ही न हो - निर्विवाद 
  52. जो निन्दा के योग्य हो - निन्दनीय 
  53. मांस रहित भोजन - निरामिष 
  54. रात्रि में विचरण करने वाला - निशाचर 
  55. किसी विषय का पूर्ण ज्ञाता - पारंगत 
  56. पृथ्वी से सम्बन्धित - पार्थिव 
  57. रात्रि का प्रथम प्रहर - प्रदोष 
  58. जिसे तुरंत उचित उत्तर सूझ जाए - प्रत्युत्पन्नमति 
  59. मोक्ष का इच्छुक - मुमुक्षु 
  60. मृत्यु का इच्छुक - मुमूर्षु 
  61. युद्ध की इच्छा रखने वाला - युयुत्सु 
  62. जो विधि के अनुकूल है - वैध 
  63. जो बहुत बोलता हो - वाचाल 
  64. शरण पाने का इच्छुक - शरणार्थी 
  65. सौ वर्ष का समय - शताब्दी 
  66. शिव का उपासक - शैव 
  67. देवी का उपासक - शाक्त 
  68. समान रूप से ठंडा और गर्म - समशीतोष्ण 
  69. जो सदा से चला आ रहा हो - सनातन 
  70. समान दृष्टि से देखने वाला - समदर्शी 
  71. जो क्षण भर में नष्ट हो जाए - क्षणभंगुर 
  72. फूलों का गुच्छा - स्तवक 
  73. संगीत जानने वाला - संगीतज्ञ 
  74. जिसने मुकदमा दायर किया है - वादी 
  75. जिसके विरुद्ध मुकदमा दायर किया है - प्रतिवादी 
  76. मधुर बोलने वाला - मधुरभाषी 
  77. धरती और आकाश के बीच का स्थान - अन्तरिक्ष 
  78. हाथी के महावत के हाथ का लोहे का हुक - अंकुश 
  79. जो बुलाया न गया हो - अनाहूत 
  80. सीमा का अनुचित उल्लंघन - अतिक्रमण 
  81. जिस नायिका का पति परदेश चला गया हो - प्रोषित पतिका
  82. जिसका पति परदेश से वापस आ गया हो - आगत पतिका 
  83. जिसका पति परदेश जाने वाला हो - प्रवत्स्यत्पतिका 
  84. जिसका मन दूसरी ओर हो - अन्यमनस्क 
  85. संध्या और रात्रि के बीचकी वेला - गोधुलि 
  86. माया करने वाला - मायावी 
  87. किसी टूटी - फूटी इमारत का अंश - भग्नावशेष 
  88. दोपहर से पहले का समय - पूर्वाह्न 
  89. कनक जैसी आभा वाला - कनकाय 
  90. हृदय को विदीर्ण कर देने वाला - हृदय विदारक 
  91. हाथ से कार्य करने का कौशल - हस्तलाघव 
  92. अपने आप उत्पन्न होने वाला - स्त्रैण 
  93. जो लौटकर आया है - प्रत्यागत 
  94. जो कार्य कठिनता से हो सके - दुष्कर 
  95. जो देखा न जा सके - अलक्ष्य 
  96. बाएँ हाथ से तीर चला सकने वाला - सव्यसाची 
  97. वह स्त्री जिसे सूर्य ने भी न देखा हो - असुर्यम्पश्या 
  98. यज्ञ में आहुति देने वाला - हौदा 
  99. जिसे नापना सम्भव न हो - असाध्य 
  100. जिसने किसी दूसरे का स्थान अस्थाई रूप से ग्रहण किया हो - स्थानापन्

Paksh in Hindi (पक्ष)


Paksh

पक्ष - 

क्रिया के जिस रूप से क्रिया प्रक्रिया अर्थात क्रिया व्यापार का बोध होता है ,उसे क्रिया का पक्ष कहते हैं ! यह क्रिया- व्यापार दो दृष्टियों से देखा जा सकता है ! पहली दृष्टि से हम देखते हैं कि क्रिया की प्रक्रिया आरंभ होने वाली है अथवा आरंभ हो चुकी है ,अथवा वर्तमान में चालू है या हो चुकी है ! दूसरी दृष्टि में क्रिया -प्रक्रिया को एक इकाई के रूप में देखते हैं ! दोनों दृष्टियों के प्रमुख पक्ष उदाहरण सहित इस प्रकार हैं - 

1 . (क ) आरंभदयोतक पक्ष -इस पक्ष में क्रिया के आरंभ होने की स्थिति का बोध होता है ,
            जैसे - अब मोहन खेलने लगा है !

(ख ) सातप्यबोधक पक्ष - इससे क्रिया की प्रक्रिया के चालू रहने का बोध होता है ,जैसे - 
        गीता कितना अच्छा गा रही है !

(ग ) प्रगतिदयोतक पक्ष - इससे क्रिया की निरंतर प्रगति का बोध होता है ,जैसे - 
       भीड़ बढ़ती जा रही है ! 

(घ ) पूर्णतादयोतक पक्ष - इस पक्ष से क्रिया के पूरी तरह समाप्त हो जाने का बोध होता है,
       जैसे - वह अब तक काफी खेल चूका है ! 

2. (क ) नित्यतादयोतक पक्ष - इस पक्ष से क्रिया के नित्य अर्थात सदा बने रहने का बोध होता 
          है , इसका आदि -अंत नहीं होता , जैसे - पृथ्वी गोल है !, सूरज पूर्व में निकलता है !

(ख ) अभ्यासदयोतक पक्ष - यह पक्ष क्रिया के स्वभाववश होने का सूचक है , जैसे - 
        वह दिन भर मेहनत करता था तब सफल हुआ ! 
        

Pronunciation Errors (उच्चारणगत अशुद्धियाँ )




उच्चारणगत अशुद्धियाँ = बोलने और लिखने में होने वाली अशुद्धियाँ प्राय: दो प्रकार की होतीहैं 
- व्याकरण सम्बन्धी तथा उच्चारण सम्बन्धी , यहाँ हम उच्चारण एवं वर्तनी सम्बन्धी महत्वपूर्ण त्रुटियों  की ओर संकेत करंगे , ये अशुद्धियाँ स्वर एवं व्यंजन और विसर्ग तीनों वर्गों से सम्बन्धित होती हैं , व्यंजन सम्बन्धी त्रुटियाँ वर्तनी के अन्तर्गत आ गई हैं , नीचे  स्वर 
एवं विसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियों की और इंगित किया गया है !

अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप - 

1 . - स्वर या मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ -

1 - अ ,आ सम्बन्धी भूलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- अहार               आहार 
- अजमायश        आजमाइश 

2 - इ , ई सम्बन्धी भलें =  की मात्रा होनी चाहिए ,  की नहीं - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- कोटी               कोटि 
- कालीदास         कालिदास 

= इ की मात्रा छूट गई है , होनी चाहिए - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- वाहनी              वाहिनी 
- नीत                 नीति 

= इ की मात्रा नहीं होनी चाहिए - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- वापिस             वापस 
- अहिल्या           अहल्या 

 की मात्रा होनी चाहिए , इ की नहीं - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- निरोग              नीरोग 
- दिवाली             दीवाली 

3 - उ ,ऊ सम्बन्धी भूलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- तुफान              तूफान 
- वधु                  वधू 

4 -  सम्बन्धी भलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- उरिण               उऋण 
- आदरित            आदृत 

5 - ए ,ऐ ,अय सम्बन्धी भलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- नैन                 नयन 
- सैना                सेना 
- चाहिये             चाहिए 

6 -  और यी सम्बन्धी भलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- नई                 नयी 
- स्थाई              स्थायी 

7 - ओ , और ,अव ,आव  सम्बन्धी भूलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- चुनाउ              चुनाव 
- होले                हौले 

8 - अनुस्वार और अनुनासिक सम्बन्धी भलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- गंवार               गँवार 
- अंधेरा               अँधेरा    

9 - पंचम वर्ण का प्रयोग - ज् , ण ,न , म , ङ्  को पंचमाक्षर कहते हैं ,ये अपने वर्ग के व्यंजन के साथ प्रयुक्त होते हैं - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप

- कन्धा               कंधा 
- सम्वाद              संवाद 

10 - विसर्ग सम्बन्धी भूलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- दुख                 दुःख 
- अंताकरण         अंत:करण 

- सन्धि करने में भूलें - ( स्वर सन्धि )-

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- अत्याधिक        अत्यधिक 
- अनाधिकार       अनधिकार 
- सदोपदेश          सदुपदेश 

व्यंजन सन्धि में भूलें  - 

अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- महत्व            महत्त्व 
- उज्वल            उज्ज्वल 
- सम्हार            संहार 

विसर्ग सन्धि में भूलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- अतेव              अतएव 
- दुस्कर             दुष्कर 
- यशगान           यशोगान 

समास सम्बन्धी भूलें - 

  अशुद्ध रूप         शुद्ध रूप 

- उस्मा              ऊष्मा 
- ऊषा                उषा 
- अध्यन            अध्ययन 

Rasa in Hindi (Aesthetics) ( रस )




रस - काव्य को पढ़ते या सुनते समय हमें जिस आनन्द की अनुभूति होती है ,उसे ही रस कहा जाता है ! रसों की संख्या नौ मानी गई हैं ! 

    रस का नाम                          स्थायीभाव 

1- श्रृंगार                                 - रति 
2- वीर                                    - उत्साह 
3- रौद्र                                    - क्रोध 
4- वीभत्स                               - जुगुप्सा ( घृणा )
5- अदभुत                               - विस्मय 
6- शान्त                                 - निर्वेद 
7- हास्य                                 - हास
8- भयानक                             - भय
9- करुण                                 - शोक 

( इनके अतिरिक्त दो रसों की चर्चा और होती है )- 

10- वात्सल्य                           - सन्तान विषयक रति 
11- भक्ति                                - भगवद विषयक रति 

Sentence Errors Correction (वाक्य अशुद्धि शोधन)



वाक्य अशुद्धि शोधन = सार्थक एवं पूर्ण विचार व्यक्त करने वाले शब्द समूह को वाक्य कहा जाता है ! प्रत्येक भाषा का मूल ढांचा वाक्यों पर ही आधारित होता है ! इसलिए यह अनिवार्य है कि वाक्य रचना में पद -क्रम और अन्वय का विशेष ध्यान रखा जाए ! इनके प्रति सावधान न रहने से वाक्य रचना में कई प्रकार की भूलें हो जाती हैं ! वाक्य रचना के लिए अभ्यास की परम आवश्यकता होती है ! जैसे - 

1 - संज्ञा सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 
  
      अशुद्ध                                                  शुद्ध 

- वह आंख से काना है ।                                वह काना है । 
- आप शनिवार के दिन चले जाएं ।                  आप शनिवार को चले जाएं । 

2 - परसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियाँ

        अशुद्ध                                                   शुद्ध 

- आप भोजन किया ?                                 आपने भोजन किया । 
- उसने नहाया ।                                        वह नहाया । 

3 - लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

    अशुद्ध                                                    शुद्ध 

- हमारी नाक में दम है ।                           हमारे नाक में दम है । 
- मुझे आदेश दी ।                                   मुझे आदेश दिया । 

4 - वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

       अशुद्ध                                              शुद्ध 

- उसे दो रोटी दे दो ।                                उसे दो रोटियां दे दो । 
- मेरा कान मत खाओ ।                           मेरे कान मत खाओ । 

5 - सर्वनाम सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

      अशुद्ध                                                      शुद्ध 

- तुम तुम्हारे रास्ते लगो ।                          तुम अपने रास्ते लगो । 
- हमको क्या ?                                       हमें क्या ? 

6 - विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

      अशुद्ध                                              शुद्ध 

- मुझे छिलके वाला धान चाहिए ।               मुझे धान चाहिए । 
- एक गोपनीय रहस्य ।                            एक रहस्य । 

7 - क्रिया सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

       अशुद्ध                                          शुद्ध 

- उसे हरि को पटक डाला ।                    उसने हरि को पटक दिया । 
- वह चिल्ला उठा ।                             वह चिल्ला पड़ा । 

8 - मुहावरे सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

       अशुद्ध                                                शुद्ध 

- वह श्याम पर बरस गया ।                       वह श्याम पर बरस पड़ा । 
- उसकी अक्ल चक्कर खा गई ।                  उसकी अक्ल चकरा गई ।     

9 - क्रिया विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

       अशुद्ध                                           शुद्ध  

- वह लगभग रोने लगा ।                       वह रोने लगा । 
- उसका सर नीचे था ।                           उसका सर नीचा था । 

10 - अव्यय सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

       अशुद्ध                                              शुद्ध 

-  वे संतान को लेकर दुखी थे ।                  वे संतान के कारण दुखी थे । 
- वहां अपार जनसमूह एकत्रित था ।            वहां अपार जन -समूह एकत्र था । 

11 -  वाक्यगत सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

          अशुद्ध                                            शुद्ध   

- तलवार की नोक पर -                         तलवार की धार पर - 
- मेरी आयु बीस की है ।                        मेरी अवस्था बीस वर्ष की है । 

12 - पुनरुक्ति सम्बन्धी अशुद्धियाँ = 

           अशुद्ध                                             शुद्ध 

- मेरे पिता सज्जन पुरुष हैं ।                      मेरे पिता सज्जन हैं । 
- वे गुनगुने गर्म पानी से स्नान करते हैं ।      वे गुनगुने पानी से स्नान करते हैं । 

Vachan (Singular-Plural) (वचन)




वचन:-



संज्ञा अथवा अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप में संख्या का  बोध हो , उसे वचन कहते हैं !



वचन के दो भेद होते हैं - 



1-  एकवचन :-  संज्ञा के जिस रूप से एक ही वस्तु , पदार्थ या प्राणी का बोध होता है , उसे एकवचन कहते हैं !

     जैसे -  लड़की , बेटी , घोड़ा , नदी आदि !



2-  बहुवचन :-  संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं , पदार्थों या प्राणियों का बोध होता है , उसे बहुवचन कहते हैं !

     जैसे -  लड़कियाँ , बेटियाँ , घोड़े  , नदियाँ  आदि !



-  एकवचन से  बहुवचन बनाने के नियम इस प्रकार हैं -



1-   को एं कर देने से =    रात = रातें 



2-  अनुस्वारी  ( . ) लगाने से =    डिबिया =  डिबियां 



3-  यां जोड़ देने से =    रीति =  रीतियां 



4-  एं लगाने से =   माला =  मालाएं 



5-    को  कर देने से =   बेटा =  बेटे 

Vritti in Hindi (वृत्ति)


Vritti 

वृत्ति 

वृत्ति का अर्थ है मन:स्थिति। इसे क्रियार्थ भी कहते हैं। वक्ता जो कुछ भी कहता है, वह मन:स्थिति अर्थात मन में उत्पन्न भाव-विचार के अनुसार कहता है। अत: वृत्ति का लक्षण हुआ - क्रिया के जिस रूप से वक्ता की वृत्ति अथवा मन:स्थिति का बोध होता है उसे वृत्ति या क्रियार्थ कहते हैं। 

हिंदी में वृत्ति के पांच भेद हैं :-

1. विध्यर्थ:- विध्यर्थ का अर्थ है - विधि सम्बन्धी तात्पर्य अथवा क्रिया करने की  देने का भाव। उदाहरण : ज़रा समय 'बताइए। यहाँ 'समय बताइए' पूछने वाले की इच्छा का बोधक है अत: बताइए क्रिया रूप से विध्यर्थ का बोध होता है।

2. निश्चयार्थ :- जिस क्रिया रूप से कार्य के होने का निश्चित रूप से पता चलता है उसे निश्चयार्थ कहते हैं। जैसे सुरेश क्रिकेट खेल रहा है। यहाँ 'खेल रहा है' क्रिया से निश्चयार्थ प्रकट होता है। सत्य और असत्य के सूचक वाक्य निश्चयार्थ के अंतर्गत आते हैं। 

3. संभावनार्थ:- कुछ कथन निश्चित न होकर अनिश्चित होते हैं जैसे संभव है आज वर्षा हो अत: क्रिया के जिस रूप से संभावना का बोध होता है उसे संभावनार्थ कहते हैं। 

4. संदेहार्थ :- जिस क्रिया से क्रिया के होने में संदेह का भाव हो उसे संदेहार्थ कहते हैं, अर्थात इस क्रिया के होने के साथ कुछ संदेह बना रहता है जैसे वह गाँव से चल पड़ा होगा इस कथन में निश्चय से साथ कुछ संदेह भी है। 

5. संकेतार्थ:- कार्य सिद्धि के लिए किसी शर्त का पूरा होना ज़रूरी होता है अत: जिस वाक्य में दो क्रियाएं होती हैं और दोनों में कार्य - कारण संबंध होता है अर्थात एक क्रिया में कार्य की होने की तथा दूसरी में उसके परिणाम की सूचना रहती है उसे संकेतार्थ क्रिया कहते हैं। दूसरे शब्दों में जहाँ एक कार्य का होना दूसरे कार्य के होने पर निर्भर करता है वहां संकेतार्थ क्रिया होती है जैसे अगर बस आ जायेगी तो मैं ठीक समय पर पहुँच जाउंगा। यहाँ 'अगर', 'तो', से संकेतार्थ भाव स्पष्ट है. 

Words with Various Meanings (अनेकार्थी शब्द)



अनेकार्थी शब्द - 

अरुण - लाल ,सूर्य का सारथि ,सूर्य 

अज - दशरथ के  पिता ,बकरा ,ब्रह्मा 

अर्णव - समुंद्र ,सूर्य ,इंद्र 

आम - आम  का फल ,सर्वसाधारण 

इंद्र - राजा ,देवताओं का राजा 

इंदु - चन्द्रमा ,कपूर 

उमा - पार्वती ,दुर्गा ,हल्दी 

उत्तर - जवाब ,एक दिशा 

काल - समय ,मृत्यु ,यमराज 

कोटि - करोड़ श्रेणी ,धनुष का सिरा 

कपि - बंदर ,हाथी ,सूर्य 

केतु - पताका ,एक अशुभ ग्रह 

कुल - वंश ,सम्पूर्ण 

खर - दुष्ट ,गधा ,तिनका 

ख - आकाश ,सूर्य ,स्वर्ण 

खत - पत्र ,लिखावट 

गति - चाल ,हालत ,मोक्ष 

घन - घना ,बादल 

घट - घड़ा ,शरीर ,हृदय 

चश्मा - ऐनक ,झरना 

चूना - टपकना ,पुताई करने वाला चूना 

छत्र - छाता ,कुकुरमुत्ता ,छतरी 

पास - उत्तीर्ण ,निकट 

बाग - उपवन ,लगाम 

लाल - माणिक्य ,पुत्र ,रक्तवर्णी 

वर - श्रेष्ट ,दूल्हा ,वरदान 

रस - काव्यानंद ,भोज्यरस ,स्वाद 

मित्र - सूर्य ,दोस्त 

मंगल - कल्याण ,एक ग्रह 

वंश - बाँस ,कुल 

जरा - बुढ़ापा ,थोड़ा -सा ,जला हुआ 

तरणि - सूर्य ,नौका 

दक्ष - चतुर ,ब्रह्मा के पुत्र 


धनंजय - अर्जुन, अग्नि 

पति - स्वामी, शौहर 

पोत - जहाज , मोती , बच्चा 

पत्र  - चिट्ठी , पत्ता 

पद - पैर , पोस्ट , छंद 

परदा - आवरण , पट, घूंघट 

परी - अप्सरा ,लेटी ,घी मापने का पात्र 

नाना - माता का पिता ,विविध 

मुद्रा - अंगूठी ,सिक्का ,भावमुद्रा 

भूत - भूत प्रेत ,भूतकाल 

स्नेह - प्रेम ,तेल 

हस्ती - हाथी ,हैसियत 

सैंधव - घोड़ा ,नमक 

श्री - शोभा ,लक्ष्मी ,सम्पत्ति 

श्याम - कृष्ण ,काला 

रंभा - एक अप्सरा ,केला ,वेश्या 

रसा - पृथ्वी ,जीभ ,शोरबा 

लय - लीन होना ,ताल ,प्रवाह 

Words with Different Meanings and Same Pronunciation (श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द)




श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द :- ये शब्द चार शब्दों से मिलकर बना है ,श्रुति+सम +भिन्न +अर्थ , इसका अर्थ है . सुनने में समान लगने वाले किन्तु भिन्न अर्थ वाले दो शब्द अर्थात वे शब्द जो सुनने और उच्चारण करने में समान प्रतीत हों, किन्तु उनके अर्थ भिन्न -भिन्न हों , वे श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं . 

ऐसे शब्द सुनने या  उच्चारण करने में समान भले प्रतीत हों ,किन्तु समान होते नहीं हैं , इसलिए उनके अर्थ में भी परस्पर भिन्नता होती है ; जैसे - अवलम्ब और अविलम्ब . दोनों शब्द सुनने में समान लग रहे हैं , किन्तु वास्तव में समान हैं नहीं ,अत: दोनों शब्दों के अर्थ भी पर्याप्त भिन्न हैं , 'अवलम्ब ' का अर्थ है - सहारा , जबकि  अविलम्ब का अर्थ है - बिना विलम्ब के अर्थात शीघ्र . 

ये शब्द निम्न इस प्रकार से है - 

अंस - अंश = कंधा - हिस्सा 

अंत - अत्य = समाप्त - नीच 

अन्न -अन्य = अनाज -दूसरा 

अभिराम -अविराम = सुंदर -लगातार 

अम्बुज - अम्बुधि = कमल -सागर 

अनिल - अनल = हवा -आग 

अश्व - अश्म = घोड़ा -पत्थर 

अनिष्ट - अनिष्ठ = हानि - श्रद्धाहीन 

अचर - अनुचर = न चलने वाला - नौकर 

अमित - अमीत = बहुत - शत्रु 

अभय - उभय = निर्भय - दोनों 

अस्त - अस्त्र = आँसू - हथियार 

असित - अशित = काला - भोथरा 

अर्घ - अर्घ्य = मूल्य - पूजा सामग्री 

अली - अलि = सखी - भौंरा 

अवधि - अवधी = समय - अवध की भाषा 

आरति - आरती = दुःख - धूप-दीप 

आहूत - आहुति = निमंत्रित - होम 

आसन - आसन्न = बैठने की वस्तु - निकट 

आवास - आभास = मकान - झलक 

आभरण - आमरण = आभूषण - मरण तक 

आर्त्त - आर्द्र = दुखी - गीला 

ऋत - ऋतु = सत्य - मौसम 

कुल - कूल = वंश - किनारा 

कंगाल - कंकाल = दरिद्र - हड्डी का ढाँचा 

कृति - कृती = रचना - निपुण 

कान्ति - क्रान्ति = चमक - उलटफेर 

कलि - कली = कलयुग - अधखिला फूल 

कपिश - कपीश = मटमैला - वानरों का राजा 

कुच - कूच = स्तन - प्रस्थान 

कटिबन्ध - कटिबद्ध = कमरबन्ध - तैयार / तत्पर 

छात्र - क्षात्र = विधार्थी - क्षत्रिय 

गण - गण्य = समूह - गिनने योग्य 

चषक - चसक = प्याला - लत 

चक्रवाक - चक्रवात = चकवा पक्षी - तूफान 

जलद - जलज = बादल - कमल 

तरणी - तरुणी = नाव - युवती 

तनु - तनू = दुबला - पुत्र 

दारु - दारू = लकड़ी - शराब 

दीप - द्वीप = दिया - टापू 

दिवा - दीवा = दिन - दीपक 

देव - दैव = देवता - भाग्य 

नत - नित = झुका हुआ - प्रतिदिन 

नीर - नीड़ = जल - घोंसला 

नियत - निर्यात = निश्चित - भाग्य 

नगर - नागर = शहर - शहरी 

निशित - निशीथ = तीक्ष्ण - आधी रात 

नमित - निमित = झुका हुआ - हेतु 

नीरद - नीरज = बादल - कमल 

नारी - नाड़ी = स्त्री - नब्ज 

निसान - निशान = झंडा - चिन्ह 

निशाकर - निशाचर = चन्द्रमा - राक्षस 

पुरुष - परुष = आदमी - कठोर 

प्रसाद - प्रासाद = कृपा - महल 

परिणाम - परिमाण = नतीजा - मात्रा 


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